Monday, August 31, 2020

गज़ल - फ़िराक गोरखपुरी

 

गज़ल

फ़िराक गोरखपुरी

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फ़िराक गोरखपुरी (रघुपति सहाय) उर्दू के श्रेष्ठतम कवियों में से एक हैं। डिप्टी कलेक्टरी छोड़कर वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर बने थे। गुले-नग्मा उनकी श्रेष्ठतम रचना है।

फ़िराक की भाषा उर्दू है, पर उन्होंने लोकप्रचलित भाषा में काव्य-रचना की है। इसीलिए उनकी भाषा में लोकभाषा, हिन्दी और संस्कृत के तत्सम शब्द भी मिल जाते हैं।

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नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजु़क गिरहें खोले हैं
या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोले हैं।

सुबह का समय है। नए रस से भरी हुई कलियाँ अपनी पंखुड़ियों

की कोमल गांठें खोल रही हैं अर्थात कलियाँ खिल रही हैं;  

या फिर रंग और गंध उपवन में उड़ने-बिखरने की तैयारी कर रही हैं !

दोनों बात एक ही हैं। कलियाँ खिलेंगी तो रंग और गंध का प्रसार भी होगा

  

 

 

तारे आंखें झपकावें हैं, ज़र्रा-ज़र्रा सोये हैं
तुम भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं।

रात का समय है। तारे टिमटिमा रहे हैं और प्रत्येक कण

सो रहा है । चारों तरफ रात का सन्नाटा फैला है । कवि कहता है कि

मित्रों, अगर तुम सुन सको तो सुनो, सन्नाटा कुछ कह रहा है ।

कवि को उस सन्नाटे में भी कोई सन्देश सुनाई पड़ता है ।

 

 

हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला
किस्मत हम को रो लेवे है, हम किस्मत को रो ले हैं।

कवि का अपनी किस्मत से तनातनी का  रिश्ता है। कवि अपनी

दशा का ज़िम्मेदार किस्मत को बताता है, वहीं किस्मत कवि को ही

उसकी दशा की ज़िम्मेदार बताती है। किस्मत कहती होगी कि कवि

अकर्मण्य है या फिर अपनी गलतियों के कारण उसकी दशा खराब है।

इस प्रकार दोनों ही एक दूसरे को कोसते हैं।

  

 

जो मुझको बदनाम करे हैं, काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं।

फिराक की निंदा करने वाले भी बहुत सारे लोग थे।

उनके लिए वे कहते हैं –मुझे बदनाम करने वाले अपनी कमियों और

कमज़ोरियों की तरफ़ ध्यान नहीं देते हैं। यदि वे थोड़ा-सा

विचार करें तो उन्हें पता चल जाएगा कि एक तरह से

वे अपनी कमियों और कमज़ोरियों

को उजागर कर रहे हैं।

 

 

ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं।

आधे-अधूरे मन से कोई भी उपलब्धि नहीं होती है,

प्रेम तो ज़रा भी नहीं मिलता है। प्रेम (सांसारिक या आध्यात्मिक)

पाने के लिए पहली शर्त है-व्यक्ति को दीवाना (पागल)

होना पड़ेगा। दीवानगी एक बड़ी कीमत है।

कवि बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास (दुरुस्त होश और

हवास में अर्थात विवेक के साथ, स्वस्थ मन और सचेत होकर)

यह कीमत देने के लिए तैयार है।

 

तेरे गम का पासे-अदब है, कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं।

कवि को प्रेम में दुख मिला है। उसे पता है कि

कवि को रोते देखकर उसके प्रेमपात्र को दुख

होगा और दुनिया भी उसे न जाने क्या-क्या कहेगी। 

इसलिए वह अपने दुखों को अपने प्रेममात्र और

दुनिया से छिपाकर एकांत में चुपके-चुपके रोता है।

 

 

 

 

फ़ितरत का कायम है तवाज़ुन आलमे-हुस्नो-इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं, खुद को जितना खो ले हैं।

प्रकृति में सर्वत्र एक संतुलन मौज़ूद है।

यह संतुलन सौन्दर्य और प्रेम की दुनिया में भी

मौज़ूद है। जो जितना समर्पित होता है, उसे उतना ही मिलता है।

सौन्दर्य और प्रेम की दुनिया में भी यह सिद्धांत लागू होता है।

समर्पण से और अपने अहंकार को गला देने से ही प्रेम मिलता है।

                                                       

 

आबो-ताब अश्आर न पूछो तुम भी आंखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रो ले हैं।

फ़िराक कहते हैं कि ये कोई न पूछे कि उनके छंदों में चमक और

प्रभाव कहां से आया है, बल्कि स्वयं अपनी आंखों से देख ले।

तब पता चलेगा कि कवि के पीड़ा से ही उसकी कविताओं/छन्दों

की रचना हुई है। कवि ने आंसू बहाए हैं, तब जाकर

उसकी कविताओं/छंदों में ऐसी चमक और ऐसा प्रभाव पैदा हुआ है।

 

 

 

ऐसे में तू याद आये है अंजुमने-मय में रिंदों को
रात गए गर्दू पै फ़रिश्ते बाबे-गुनह जग खोले हैं।

मदिरालय में शराब पीनेवालों की महफ़िल में शराबी को तू याद

आता है। यह याद करना ठीक वैसा ही है, जैसे आधी रात को

आसमान में बैठे देवदूत संसार के लोगों के पापों का

अध्याय (बाबे-गुनह) खोलते हैं, अपराधों का लेखा-जोखा देखते हैं।

कहने का तात्पर्य यह है कि शराबी तुझे याद करते हुए अपने गुनाहों और

गलतियों को याद करता है, जिसके कारण आज वह

शराबी बन गया है। उसकी गलती है-प्रेम।

यहां तू और तुझे से तात्पर्य है, कवि की प्रेमिका ।

 

सदके फ़िराक एजाजे-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज़
इन ग़ज़लों के परदों में तो मीरकी ग़ज़लें बोले हैं।

 

फ़िराक पर सदके जाऊं, कुर्बान हो जाऊं कि इतनी श्रेष्ठ

कविताएं कैसे लिख लीं। इन गज़लों को पढ़ते हुए लगता

है मानो मीर की गज़ल पढ़ी जा रही हो।

 

इस शे’र में कवि फ़िराक ने अपनी ही कविता की प्रशंसा

की है और स्वीकार किया है कि उनकी कविता मीर

की कविता के समान श्रेष्ठ है। इसी कारण लोगों  को

यह भ्रम हो सकता है कि ये कविताएं मीर ने लिखी हैं।

 

 

 

शब्दार्थ

नौरस – नए रस (से भरी)

गुंचे -कलियां

नाजु़क -कोमल

गिरहें -गांठें

रंगो-बू –रंग और गंध

गुलशन –बागीचे/उपवन

पर तोले हैं-पंख तौलना, उड़ने की तैयारी

               करना

आंखें झपकावें -टिमटिमाना

ज़र्रा-ज़र्रा –कण-कण, प्रत्येक कण

यारो-मित्रो

शब –रात

बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास स्वस्थ होश 

                       और जाग्रत विवेक

दीवाना -पागल

गम का पासे-अदब-दुख का लिहाज़

फ़ितरत –प्रकृति (यहां कुदरत)

 

कायम -मौज़ूद

तवाज़ुन-सन्तुलन

आलमे-हुस्नो-इश्क –हुस्न और इश्क का आलम, सौन्दर्य और प्रेम का संसार
आबो-ताब –आब और ताब, चमक और प्रभाव

अश्आर-शे’र

बैतों -छंद

मोती रो ले –कीमती आंसू बहाना

अंजुमने-मय –शराब की महफ़िल

रिंदों-शराबियों
गर्दू- आसमान

फ़रिश्ते -देवदूत

बाबे-गुनह –पाप का अध्याय

सदके फ़िराक –फ़िराक पर न्यौछावर

एजाजे-सुखन –श्रेष्ठ कविता
ग़ज़लों के परदों में –गज़ल के शे’र

 

 

 

प्रश्न अभ्यास

1.    छन्द और भाषा का नाम बताइए।

2.    कवि की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।

3.    बागीचे में कलियों के खिलने का चित्रण कवि ने किस प्रकार किया है?

4.    रात के सन्नाटे में कवि को क्या महसूस होता है?

5.    कवि और उसकी किस्मत में किस बात को लेकर तना-तनी हो सकती है?

6.    जो लोग कवि को बदनाम करते हैं, उनके लिए कवि क्या कहता है?

7.    कवि किन दो कारणों से चुपके-चुपके रो लेता है?

8.    प्रेम और सौन्दर्य के संसार में भी कौन-सा सन्तुलन दिखाई देता है? उस सन्तुलन के अनुसार प्रेमी को क्या करना होता है?

9.    कवि की कविता में चमक और प्रभाव किस कारण उत्पन्न हुआ है?

10. अंजुमने-मय में रिंदों को क्या याद आता है?

11. अंजुमने-मय के रिंदों और फ़रिश्तों में क्या समानता है?

12. अपनी शायरी को लेकर फ़िराक के क्या विचार हैं?

 

 

 

 

 

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राजेश प्रसाद            व्हाट्सऐप 9407040108         psdrajesh@gmail.com

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