Tuesday, July 28, 2020

हम तौ एक एक करि जाना' की व्याख्या, कक्षा XI, हिन्दी कोर

  XI की हिन्दी आधार की पाठ्य पुस्तक 'आरोह' में संकलित कबीरदास के प्रथम पद 'हम तौ एक एक करि जाना' की व्याख्या।

आप इस लिंक पर उक्त वीडियो देख सकते हैं-

https://youtu.be/YI68bfMNvro

Friday, July 24, 2020

धूत कहौ, अवधूत कहौ...- सवैया




सवैया
(कवितावली के उत्तर कांड से उद्धृत)
तुलसीदास
भूमिका : ईश्वर को पूर्णत: समर्पित व्यक्ति जाति, धर्म, खानदान आदि की मान्यताओं से ऊपर उठ जाता है। उसकी सबसे बड़ी पहचान ईश्वर का समर्पित भक्त होना होती है। फ़िर लोग उसके बारे में कितनी भी क्षुद्र बातें क्यों न कहें, भक्ति और आत्मविश्वास के कारण उसे उन क्षुद्र बातों का तिरस्कार करने की शक्ति मिल जाती है। इस प्रकार सच्ची धार्मिकता और सच्चा भक्त सच्चा मनुष्य बन जाता है। इससे यह भी समझ में आता है कि सच्ची धार्मिकता और भक्ति सामाजिक और राजनीतिक भेदभाव को नहीं मानती है।
बाहर से हमें तुलसीदास सीधे-सादे, सरल, निरीह और दयनीय लगते हैं, पर उन्हें भीतर से रामभक्त होने का इतना स्वाभिमान है कि वे दुनिया की क्षुद्र बातों से प्रभावित नहीं होते हैं।
धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ।
काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ॥
तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।
मांगि कै खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबको दोऊ॥

चाहे कोई मुझे धूर्त कहे, चाहे कोई संन्यासी कहे, चाहे राजपूत कहे या जुलाहा कहे। किसी की बेटी से अपने बेटे का विवाह करके मैं उसकी जाति नहीं बिगाड़ूंगा।

तुलसीदास कहते हैं-मैं तो राम के गुलाम के रूप में जाना जाता हूं और यही मेरी सबसे बड़ी पहचान है। इसलिए जिसको कुछ और कहना अच्छा लगे तो वह भी कह सकता है। मैं मांगकर खा लूंगा, मस्जिद में सो जाऊंगा, पर किसी से कोई मतलब नहीं रखूंगा।

शब्दार्थ
धूत- धूर्त, धोखेबाज़
कहौ-कहो
अवधूत-संन्यासी
रजपूते-राजपूत
जोलहा –कपड़ा बुननेवाला
कोऊ-कोई
काहू की-किसी की
बेटीसों-बेटी से
सरनाम-प्रसिद्ध
गुलामु-गुलाम, दास, सेवक
जाको - जिसको
रुचै –अच्छा लगे
कछु ओऊ- कुछ और
मसीत -मस्जिद
लैबोको एकु न दैबको दोऊ- किसी से कोई  मतलब न रखना

सूक्ष्म प्रश्न

1.   छंद और भाषा का नाम बताइए।
2.   कविता की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
3.   लोग तुलसीदास को क्या-क्या कहते रहे होंगे?
4.   अपनी किन विशेषताओं के कारण तुलसीदास लोगों की बातों का सामना कर पाते हैं?
5.   तुलसीदास का हृदय स्वाभिमानी भक्त का हृदय है। कैसे?
6.   जाति-धर्म को लेकर तुलसीदास का क्या दृष्टिकोण रहा होगा?
7.   तुलसीदास कहते हैं कि ‘काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ’...अगर वे काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब के स्थान पर काहू की बेटासों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता?

लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप- सामान्य अर्थ



लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप

(गोस्वामी तुलसीदास के महाकाव्य श्रीरामचरितमानस के लंका कांड से उद्धृत)
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1.    श्री रामचरितमानस एक महाकाव्य है और उसकी भाषा अवधी है।
2.    ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ श्रीरामचरितमानस के लंका कांड से उद्धृत है।
3.    राम को ईश्वर का अवतार मानकर भी तुलसीदास ने राम का चित्रण सामान्य मनुष्य के रूप में किया है, जो रोता है, जो दुखी होता है, जो इच्छाएं प्रकट करता है, अर्थात सच्ची मानवीय अनुभूति का चित्रण किया है।
4.    ‘उमा एक अखंड रघुराई। नरगति भगत कृपाल देखाई॥’ यह चौपाई ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ में अचानक आ जाती है। यह कथन शिव का है और वे उमा (पार्वती) से कह रहे हैं।
शिव के इस कथन का अर्थ है-‘हे उमा, राम अखंड हैं। वे सुख-दुख से निर्लिप्त हैं, पर वे लक्ष्मण के मूर्च्छित हो जाने पर सामान्य मनुष्यों की तरह विलाप-प्रलाप करते हुए संसार में रहने वाले सामान्य मनुष्यों की वास्तविक दशा से अपने भक्तों को परिचित कराया है।’
5.    इस चौपाई से पता चलता है कि श्रीरामचरितमानस में शिव उमा (पार्वती) को राम की कथा सुना रहे हैं। इस प्रकार आप कह सकते हैं कि श्रीरामचरितमानस में राम की कथा फ़्लैशबैक में चलती है।
6.    ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ में तुलसीदास ने तीन छंदों का प्रयोग किया है-दोहा, चौपाई, सोरठा।
7.     ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ में लक्ष्मण के मूर्च्छित हो जाने पर राम विलाप करते हैं और यह विलाप प्रलाप में बदल जाता है। प्रलाप का अर्थ है-अत्यधिक शोक और आघात के कारण उल्टी-सीधी और अर्थहीन बातें करते हुए रोना ।
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सारांश
संजीवनी बूटी लेकर लौटते हुए हनुमान की मुलाकात भरत से होती है। दोनों एक-दूसरे का परिचय प्राप्त करते हैं। फ़िर भरत की अनुमति लेकर हनुमान वापस लंका की ओर जाते हैं और रास्ते में मन ही मन भरत के गुणों की बार-बार सराहना करते हैं।

वहां लंका में राम अपनी गोद में मूर्च्छित लक्ष्मण को लिए बैठे हैं और अधीर होकर सोच रहे हैं कि आधी रात बीत गई, हनुमान अभी तक नहीं आए। वे विलाप और प्रलाप करने लगते हैं।

सभी वानर-भालू उनके प्रलाप को सुनकर व्याकुल हो जाते हैं।
तभी हनुमान आ जाते हैं, जैसे करुण रस में अचानक वीर रस आ जाए। वैद्य के उपचार से लक्ष्मण स्वस्थ हो जाते हैं।

लक्ष्मण के स्वस्थ होने का विवरण रावण सुनकर अपना सिर धुनने लगता है। वह व्याकुल होकर अपने भाई कुंभकर्ण को जगाता है। कुंभकर्ण रावण के सूखे मुख को देखकर कारण पूछता है। रावण सीता-हरण से लेकर युद्ध में मारे गए अपने वीर सैनिकों की बात बताता है।

रावण की बातें सुनकर कुंभकर्ण बिलखने लगता है और रावण से कहता है-‘हे दुष्ट, तू जगतमाता का हरण कर लाया, फ़िर भी अपना कल्याण चाहता है!?’
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आगे की पंक्तियों में ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ के प्रत्येक अंश का सामान्य अर्थ बताया जा रहा है, जिससे कि आप समझ सकें।
कक्षा-शिक्षण के समय विस्तृत और थोड़ी गहरी व्याख्या की जाएगी।
दोहों और चौपाइयों में संवादों को नीले रंग से लिखा गया है।
दोहा
तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहऊं नाथ तुरंत।
अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत॥
भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महुं जात सराहत पुनि-पुनि पवनकुमार॥
हनुमान ने भरत से कहा-‘ आपके प्रताप (वीरता) को हृदय (उर) में रखकर, हे प्रभु, हे नाथ, अब मैं तुरंत जाऊंगा।’
ऐसा (अस) कहकर और भरत की आज्ञा/अनुमति (आयसु) पाकर और भरत के चरणों (पद) की वन्दना (बंदि) करके हनुमान चल पड़े।
रास्ते में हनुमान (पवनकुमार) मन ही मन भरत के बाहुबल की, उनके शीलवान और गुणवान होने की तथा राम के चरणों के प्रति उनके अपार प्रेम की बार-बार सराहना करते हुए जाते हैं।
चौपाई
उहां राम लछिमनहि निहारी।  बोले बचन मनुज अनुसारी॥
अर्ध राति गइ कपि नहिं आयऊ।  राम उठाई अनुज उर लायऊ॥
वहां (लंका में) राम ने मूर्च्छित पड़े लक्ष्मण को निहारकर सामान्य मनुष्यों की तरह अधीर होकर कहा-‘आधी रात बीत गई और हनुमान नहीं आए!’ और अनुज (छोटे भाई) को हृदय से लगा लिया।


सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ। बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ॥
मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता॥
सो अनुराग कहां अब भाई।  उठहुं न सुनि मम बच बिकलाई॥
‘हे लक्ष्मण, तुम मुझे किसी तरह (काऊ) दुखी नहीं देख सकते थे। हे भाई, तुम्हारा स्वभाव सदा ही कोमल और मृदुल रहा। मेरे हित के लिए तुमने पिता-माता का त्याग कर दिया (जबकि वनवास मुझे मिला था, तुम्हें नहीं) और वन (बिपिन), ठंड (हिम), धूप (आतप) और आंधी-तूफ़ान (बाता) सहन किया। हे भाई, तुम्हारा वह प्रेम (अनुराग) अब कहां है! तुम मेरे व्याकुल (बिकलाई) वचनों (बच) को सुनकर उठते क्यों नहीं हो!’

जौं जनतेउं बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउं नहिं ओहू॥
सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा॥
अस बिचारि जियं जागहुं ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता॥
‘यदि जानता कि वन में आकर भाई से बिछुड़ना होगा तो मैं वहीं पिता के वचनों को नहीं मानता।
पुत्र (सुत), धन/वित्त (बित), पत्नी, भवन और परिवार आदि यदि खो जाएं तो इन्हें बार-बार प्राप्त किया जा सकता है, पर तुम जैसा सगा (सहोदर) भाई भी नहीं मिल सकता। मन में यह सोचकर हे तात, हे लक्ष्मण, जागो।’

जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना॥
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥
‘जैसे बिना पंखों के पक्षी की, बिना मणि के नाग की और बिना सूंड़ के हाथी की दशा दीन और दुखपूर्ण हो जाती है,
हे भाई, मेरा जीवन तुम्हारे बिना ऐसा (अस) ही होगा। कठोर भाग्य (जड़ दैव) मुझे ऐसा ही दुखपूर्ण जीवन जीने पर विवश करेगा।’  

जैहउं अवध कवन मुंह लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गंवाई॥
बरु अपजस सहतेउं जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥
अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहिहि निठुर कठोर उर मोरा॥
‘मैं कौन-सा मुंह लेकर अयोध्या जाऊंगा! लोग कहेंगे कि मैंने पत्नी के लिए प्रिय भाई को गंवा दिया। चाहे (बरु) ही मुझे संसार में पत्नी को गंवाने की बदनामी/अपयश (अपजस) सहन करनी पड़ती, पर पत्नी को गंवा देना कोई बड़ी क्षति नहीं होती। अब इस बुरे लोक/संसार (अपलोकु) में, हे पुत्र, मेरा निष्ठुर और कठोर हृदय तेरे न होने का शोक सहेगा।’

निज जननी के एक कुमारा। तात तासु तुम्ह प्राण अधारा॥
सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी। सब बिधि सुखद परम हित जानी॥
उतरु काह दैहउं तेहि जाई। उठि किन मोहि सिखावहु भाई॥
‘मैं अपनी माता (जननी) का इकलौता पुत्र हूं, पर हे लक्ष्मण, उसके (तासु) प्राण तुममें बसते थे। तुम्हारा हाथ (पानी) पकड़कर (गहि) उसने मुझे सौंपा था और सोचा था कि यह हर तरह से सुखद और हितकर होगा। जाकर उसे क्या (काह) उत्तर दूंगा,हे भाई, उठकर क्यों नहीं मुझे सिखा देते हो !’

बहु बिधि सोचत सोच बिमोचन। स्रवत सलिल राजिव दल लोचन॥
राम बहुत तरह से सोचते हैं और सोचों का आना-जाना (सोच बिमोचन-सोच से मुक्ति) होता है। उनके कमल-दल (राजिव दल) के समान नेत्रों (लोचन) से आंसू (सलिल) बहते (स्रवत) हैं।


उमा एक अखंड रघुराई। नरगति भगत कृपाल देखाई।
शिव पार्वती से कहते हैं-‘ उमा, राम अखंड हैं। इस तरह के टूटे-फूटे विचारों वाली कमज़ोरियां उनमें नहीं हैं, पर इस संसार में मनुष्य की क्या गति होती है, कृपालु राम ने भक्तों को दिखा दिया है।’



सोरठा
प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना मंह बीर रस॥
कानों से प्रभु का प्रलाप सुनकर वानरों का समूह (निकर) व्याकुल हो गया और तभी हनुमान आ गए, जैसे (जिमि) करुण रस के बीच में अचानक वीर रस आ जाए।राम की सेना में उत्साह और वीरता का संचार हो गया।

चौपाई
हरषि राम भेटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥
हर्षित होकर राम हनुमान से मिले और उन्होंने हनुमान के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की, हालांकि वे परम सुजान हैं, सबकुछ जानते थे।

तुरत बैद तब कीन्हि उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई॥
हृदयं लाइ प्रभु भेटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता॥
कपि पुनि बैद तहां पहुंचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा॥
तब तुरन्त वैद्य ने उपाय/उपचार किया। लक्ष्मण हर्षित होकर उठ बैठे। राम ने भाई को हृदय से लगा लिया। सभी (सकल) भालु-वानरों का समूह (ब्राता) भी हर्षित हुआ। हनुमान ने फ़िर वैद्य को वहां पहुंचा दिया, जिस प्रकार वे पहले उसे ले आए थे।

यह बृतांत दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ॥
ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा॥
लक्ष्मण के स्वस्थ होने का यह वृत्तांत/वर्णन (बृतांत) रावण ने सुना तो विषादग्रस्त होकर बार-बार अपना सिर धुनने लगा। वह व्याकुल होकर कुंभकर्ण के पास (पहिं) आया और विविध यत्न (जतन) करके उसको जगाया।

जागा निसिचर देखिअ कैसा। मानहुं काल देह धरि बैसा॥
कुंभकरन बूझा कहु भाई। काहे तव मुख रहे सुखाई॥
कुंभकर्ण जागा। वह देखने में कैसा था? मानो मृत्यु ने ही शरीर धारण कर लिया हो, वैसा था। कुंभकर्ण ने पूछा-‘कहो भाई, तुम्हारा मुंह सूख क्यों रहा है? क्या कारण है?’

कथा कही सब तेहि अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी॥
तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा महा जोधा संघारे॥
दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अकंपन भारी॥
अपर महोदर आदिक बीरा। परे समर महि सब रनधीरा॥
कुंभकर्ण को अभिमानी रावण ने सारी कथा सुनाई कि वह किस प्रकार सीता का हरण करके ले आया (आनी) था। रावण ने कहा-‘हे तात, वानरों ने सारे राक्षसों (निसिचर) को मार दिया है। हमारे बड़े-बड़े योद्धाओं का संहार हो चुका है। दुर्मुख (बुरे मुख वाले), सुररिपु (देवताओं के शत्रु), मनुज अहारी (मनुष्यों को खाने वाले), भट (योद्धा) अतिकाय (बड़ी काया/शरीर वाले), अकंपन भारी (जिसे कंपाना-हिलाना कठिन हो और जो भारी-भरकम हों), अपर (दूसरे) महोदर (बड़े पेट वाले) आदि (आदिक) हमारे वीर और रणधीर युद्ध (समर) में धरती (महि) पर गिर पड़े हैं


दोहा
सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बिलखान।
जगदम्बा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान॥
       रावण के वचन सुनकर कुंभकर्ण रोने-बिलखने लगा और बोला-‘तू जगदंबा (जगत          की माता) का हरण कर लाया (आनि) है । हे शठ/दुष्ट (सठ), अब तू अपना कल्याण    चाहता है!’


लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप

 

 

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प्रश्न -अभ्यास

1.     निम्नांकित पद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर लिखिए।

तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहऊं नाथ तुरंत।

अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत॥

भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।

मन महुं जात सराहत पुनि-पुनि पवनकुमार॥

 

क.  कौन किससे क्या कह रहा है?

ख.  कौन किसके गुणों की प्रशंसा कर रहा है?

ग.    वे गुण कौन-कौन से हैं?

घ.    छंद तथा भाषा का नाम बताइए।

 

2.    उहां राम लछिमनहि निहारी।  बोले बचन मनुज अनुसारी॥

अर्ध राति गइ कपि नहिं आयऊ।  राम उठाई अनुज उर लायऊ॥

 

क.  राम ने क्या कहा?

ख.  राम के बोलने में क्या विशेष बात है?

ग.    छंद तथा भाषा का नाम बताइए।

 

3.    सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ। बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ॥

मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता॥

सो अनुराग कहां अब भाई।  उठहुं न सुनि मम बच बिकलाई॥

जौं जनतेउं बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउं नहिं ओहू॥

क.  राम ने क्या कहा?

ख.  राम के बोलने में क्या विशेष बात है?

ग.    छंद तथा भाषा का नाम बताइए।

 

4.    उमा एक अखंड रघुराई। नरगति भगत कृपाल देखाई।  

क.  यह किसका कथन है तथा किससे कहा गया है?

ख.  कथन का क्या अर्थ है?

ग.    भाषा और छंद का नाम लिखिए।

5.    प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।

आइ गयउ हनुमान जिमि करुना मंह बीर रस॥

क.  भाषा और छंद का नाम बताइए।

ख.  पद्यांश का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

ग.    विलाप तथा प्रलाप में क्या अन्तर है?

घ.    पद्यांश में आए अलंकारों के नाम लिखिए।

6.    राम ने ऐसा क्यों कहा कि –‘मिलइ न जगत सहोदर भ्राता’ ?

 

7.    निम्नांकित पद्यांश  में राम ने लक्ष्मण के बिना अपना जीवन कैसा होने की बात कही है?

जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना॥

अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥

8.    निम्नांकित पद्यांश  में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण व्यक्त किया गया है?

जैहउं अवध कवन मुंह लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गंवाई॥

बरु अपजस सहतेउं जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥

9.      शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?

10 .भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं? तर्कसहित उत्तर दीजिए।

 

31.07.2020

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राजेश प्रसाद                          व्हाट्सऐप 9407040108                   ईमेल psdrajesh@gmail.com

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