Tuesday, August 25, 2020

पद-1 मेरे तो गिरधर गोपाल --मीरा

 

पद-1

 

मेरे तो गिरधर गोपाल

मीरा

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मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।

जा के सिर मोर-मुकुट मेरो पति सोई॥

 

मीरा कहती हैं- मेरे तो गिरिधर गोपाल

अर्थात् कृष्ण ही सब कुछ हैं। दूसरा कोई मेरा नहीं है।

जिसके सिर पर मोर-पंखों वाला मुकुट है, वही मेरा पति (स्वामी) है।


छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई?

संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी।।

 

मीरा कहती हैं- मैंने परिवार की मर्यादा का दावा भी छोड़ दिया है।

कृष्ण के प्रति मेरा प्रेम परिवार की मर्यादा से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।

परिवार की मर्यादा लेकर कोई करेगा भी क्या!

ना परिवार की मर्यादा के नाम पर कोई मेरा क्या कर सकता है!

संतों के पास बैठ-बैठकर मुझे लोक-लाज की

व्यर्थता का पता चल गया है।

 

 

अंसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोयी।

अब त बेलि फैलि गयी, आणंद-फल होयी॥

मैंने वियोग के आँसू बहाकर प्रेम की प्रेम-रूपी बेल को

सींच-सींचकर विकसित किया है।

अब यह बेल विकसित  हो गई है और इस पर

आनंद रूपी फल लगने लगेंगे।

दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से बिलोयी।
दधि  मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी 

 

मैंने दूध वाली मथानी से बड़े प्रेम से मथा है। दही को

मथकर मैंने घी निकाल लिया है और छाछ/मठ्ठा छोड़ दिया ।

इसका अर्थ है, मैंने दही रूपी संसार को भक्ति रूपी मथानी से बड़े प्रेम से मथा है।

दही से सार-तत्व अर्थात् घी निकाल लिया और सारहीन छाछ छोड़ दिया।

कृष्ण की भक्ति और प्रेम घी है और संसार छाछ है।


भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी।
दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही ॥

 

मीरा प्रभु के भक्त को देखकर बहुत प्रसन्न होती हैं और

संसार के लोगों को मोह-माया में लिप्त देखकर दुखी होती हैं।

मीरा कहती हैं-हे गिरिधर, मीरा तुम्हारी दासी है। अब मेरा उद्धार करो।

 

शब्दार्थ

गिरधर- कृष्ण

गोपाल- कृष्ण

मोर मुकुट-मोर के पंखों का बना मुकुट

सोई-वही

जा के-जिसके

छाँड़ि दयी-छोड़ दी

कुल की कानि-परिवार की मर्यादा

करिहै-करेगा

कहा-क्या

ढिग-पास

लोक-लाज-समाज की मर्यादा

अंसुवन-आँसू

सींचि सींचि-सींच-सींचकर

मथनियाँ-मथानी

बिलोयी-मथकर

दधि-दही

घृत-घी

काढ़ि लियो-निकाल लिया

डारि दयी-त्याग दी/फ़ेंक दी

तारो-उद्धार करो

छोयी-छाछ (सारहीन अंश)

मोही-मुझे

 

ध्यान दीजिए-

1.     मीरा की काव्यभाषा- राजस्थानी और ब्रजभाषा मिश्रित हिन्दी

2.     छंद का नाम-पद

3.     तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग

4.     रस-भक्ति

5.     पुनरुक्तिप्रकाश-बैठि-बैठि’, ‘सींचि-सींचि

6.     रूपक अलंकार-अंसुवन जल, प्रेम-बेलि’, ‘आणद-फल

7.     अनुप्रास अलंकार -गिरधर गोपाल, मोर-मुकुट, कुल की कानि, कहा करिहै कोई, लोक-लाज, बेलि बोयी

8.     अन्योक्ति अलंकार-दूध की मथनियाँ. छोयी

9.     कृष्ण के अनेक नामों का प्रयोग -गिरधर, गोपाल, लाल

10. संगीतात्मकता व गेयता

11. शिल्प-सौन्दर्य में भाषा, छंद, अलंकार, शब्द-स्रोत का उल्लेख किया जाता है

12. भाव-सौन्दर्य में अत्यंत संक्षिप्त अर्थ और भाव को लिखकर काव्यांश और कवि की काव्य-कला की सराहना की जाती है 

प्रश्न-अभ्यास

क.   मीरा किसको अपना सर्वस्व मानती हैं? वह स्वरूप कैसा है?

ख.   परिवार की मर्यादा के प्रति मीरा का क्या दृष्टिकोण है?

ग.     मीरा के रोने और प्रसन्न होने का क्या कारण है?

घ.    कृष्ण को पाने के लिए मीरा ने क्या-क्या प्रयास किया है?

ङ.    अनुप्रास और रूपक अलंकार पहचानकर सूची बनाइए।

च.    पद में पुनरुक्तिप्रकाश पहचानकर लिखिए।

छ.    प्रेम-बेलि, आणद-फल में  कौन-सा अलंकार है?

 

ज.    शिल्पसौन्दर्य और भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

             अंसुवन-जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोयी।

                        अब त बेलि फैलि गयी, आणंद-फल होयी॥

 

            दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से बिलोयी।
            दधि  मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी 

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राजेश प्रसाद                                       व्हाट्सऐप 9407040108                        psdrajesh@gmail.com

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