Tuesday, August 25, 2020

पद-2 संतो देखत जग बौराना - कबीरदास

 

पद-2

संतो देखत जग बौराना ।

कबीरदास

कबीर का पहला पद पढ़ते हुए ही आपके मन में प्रश्न आया होगा कि कबीर की काव्य-भाषा कौन-सी है। वे हिन्दी के कवि हैं, पर उनकी हिन्दी कौन-सी है?

उनकी भाषा में ब्रज, अवधी, फ़ारसी, पंजाबी और संस्कृत के तत्सम व तद्भव शब्दों का प्रयोग मिलता है। इस प्रकार वे खिचड़ी भाषा में अपनी कविताएं रचते हैं। साधुओं की भाषा खिचड़ी होती है क्योंकि जगह-जगह घूमते-फ़िरते रहने और लोगों से मिलने-जुलने के कारण उनकी भाषा पर प्रभाव पड़ जाता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि कबीर की भाषा सधुक्कड़ी हिन्दी है

कबीर ने इस दूसरे पद ‘संतो देखत जग बौराना’ में बताया है कि संत लोग संसार के लोगों को अज्ञानता की नींद से जगाना चाहते हैं, पर संतों की सच बातें सुनकर संसार के लोग क्रोधित हो जाते हैं और संतों को मारने के लिए दौड़ते हैं। अज्ञानता के कारण लोग अंधविश्वासों में उलझे रहते हैं और उन्हें गुरु भी ऐसे मिल जाते हैं, जो स्वयं कुछ नहीं जानते हैं। इस प्रकार अज्ञानी गुरु तो कुंए में गिरता ही है, शिष्यों को भी वही दशा होती है। कबीर कहते हैं कि परमात्मा का ज्ञान प्राप्त करना सहज है क्योंकि आत्मा ही परमात्मा है। पर भ्रमों में जीने वाले लोग कबीर जैसे अच्छे गुरुओं की बात नहीं मानते हैं।

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संतो देखत जग बौराना

कबीर कहते हैं कि संतों को देखकर संसार पागल हो जाता है।


साँच कहौं तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना।।

संसार के लोगों को सच बताओ तो वे मारने के लिए दौड़ा

लेते हैं और झूठी बातों पर विश्वास कर लेते हैं।


नेमी देखा धरमी देखा, प्रात करै असनाना

मैंने नियम का पालन करने वालों को देखा है, धर्म का

पालन करने वालों  को देखा है। वे सुबह-सुबह स्नान कर लेते हैं और.....

आतम मारि पखानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ज्ञाना।।

....आत्मा की तरफ़ से आंख बंद कर लेते हैं तथा

पत्थर (पखानहि-पाषाण ही) की पूजा करते हैं।

उन्हें आत्मा का कुछ पता नहीं है।

बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितेब कुराना।

मैंने बहुत-से पीर और औलिया (मुसलमान साधु और फ़कीर) भी देखे हैं, जो

कुरान नामक धर्मग्रंथ पढ़ते हैं और......


कै मुरीद तदबीर बतावै, उनमें उहै जो ज्ञाना।।

लोगों को मुरीद करके (शिष्य बनाकर)

तदबीर (युक्ति/जुगत/तकनीक) बताते हैं।

वे उतना ही बताते हैं, जितना खुद जानते हैं। वे कितना जानते हैं?

 आत्मा और परमात्मा के बारे में वे कुछ नहीं जानते हैं।


आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।

ऐसे गुरु आसन लगाकर बैठते हैं।

उनके मन में दंभ (अहंकार/घमंड) होता है। उन्हें ज्ञानी

और बहुत बड़ा गुरु होने का गुमान (अहंकार) होता है।


पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।।

लोग भ्रमित होकर पीपल और पत्थर की पूजा करते

हैं और तीर्थयात्राएं करके इस घमंड से भर जाते हैं

कि उन्होंने ज्ञान प्राप्त कर लिया है।

वे इसी घमंड में आत्मा-परमात्मा को भूले रहते हैं।


टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।

 

लोग धर्म के नाम पर टोपी पहन लेते हैं,

माला धारण कर लेते हैं, माथे पर छापा-तिलक लगा लेते हैं

साखी सब्दहि गावत भूले आतम खबरि न जाना।

साखी (दोहे) और सबद (पद) गाने में खुद

को भुलाए रखते हैं, पर आत्मा का ज्ञान उन्हें नहीं होता है।

 

हिन्दू कहै मोहि राम पियारा तुर्क कहै रहिमाना

हिन्दू कहते हैं कि उन्हें राम से प्रेम है। मुसलमान

कहते हैं कि उन्हें रहमान (दयालु/दयानिधान) से प्रेम है, जबकि राम और

रहमान-दोनों ही ईश्वर के नाम हैं।

 

आपस में दोउ लरि-लरि मूए मर्म न काहू जाना॥

अपने-अपने धार्मिक विचारों के कारण हिन्दू और मुसलमान

आपस में लड़कर मर जाते हैं, पर इस रहस्य को

दोनों ही नहीं जान पाते हैं कि राम और

रहमान इन दोनों नामों से एक ही तत्व की ओर संकेत

किया गया है। वह तत्व ईश्वर है।

 

घर-घर मंतर देत फ़िरत हैं महिमा के अभिमाना

ऐसे अज्ञानी गुरु शिष्य बनाने में बहुत आगे रहते हैं। वे घर-घर

घूमते हैं, नये-नये शिष्यों को मंत्र (दीक्षा) देते हैं। उनके मन में

अभिमान (अहंकार/घमंड) रहता है कि उनकी

बहुत महिमा (गौरव और प्रसिद्धि) है।

 

गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े अंतकाल पछिताना॥

ऐसे अज्ञानी गुरु के साथ-साथ उनके शिष्य भी डूबते हैं।

अपनी मृत्यु के समय दोनों इस बात पर पश्चात्ताप करते हैं कि

उन्होंने सहज प्राप्त होनेवाले आत्म-ज्ञान की तरफ़ ध्यान नहीं

दिया और जीवन बीत गया।


कहै कबीर सुनो हो संतो, ई सब भर्म भुलाना।

कबीर कहते हैं कि हे संतो, ये सभी भ्रम मनुष्य को भुलाने

वाले हैं। इन भ्रमों में नहीं पड़ना चाहिए।

 

केतिक कहौं कहा नहिं मानै, सहजै सहज समाना॥

पर कितना भी कहो, लोग संतों की बात को मानते नहीं हैं।

परमात्मा/आत्मा सहज है और उसका ज्ञान प्राप्त करना भी सहज है

इस सहजता को लोग स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते हैं।

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प्रश्न अभ्यास

1.     कबीर की भाषा पर पचास शब्दों में टिप्पणी लिखिए।

2.     कबीर क्यों कहते हैं कि संसार बौरा गया है?

3.     कबीर ने अज्ञानी गुरुओं के बारे में क्या-क्या बताया है?

4.     अज्ञानी गुरुओं की शरण में जाने पर शिष्य की क्या दशा होती है?

5.     नियम और धर्म का पालन करनेवालों की कौन-कौन-सी कमियां कबीर ने बताई हैं? वे कौन-कौन से बाहरी आडंबर में पड़े रहते हैं?

6.     ‘सहजै सहज समाना’ का क्या अर्थ है?

 

31.07.2020

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     राजेश प्रसाद                                                व्हाट्सऐप 9407040108                                 psdrajesh@gmail.com

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