पद-1
कबीरदास
1
हम तौ एक एक करि जानां।
कबीर कहते हैं कि हमने तो उस एक (ईश्वर) को एक के रूप
में ही जाना है। उसमें द्वैतभाव नहीं है। सब कहीं वही है,
दूसरा कोई नहीं है। आत्मा और ईश्वर एक है। संसार और ईश्वर एक है।
दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिन पहिचानां ।।
जो आत्मा और ईश्वर को अलग-अलग कहता है,
वह दोज़ख (नरक) में पड़ता है और उसने
ईश्वर और आत्मा को नहीं पहचाना है। नरक में
पड़ने का अर्थ है--वह अज्ञान के अंधेरे में रहता है।
एकै पवन एक ही पानी एकै जोति
समाना।
कबीर उदाहरण देकर अपनी बात समझाते हैं कि
संसार में सब एक ही पवन (हवा) में सांस लेते हैं,
एक ही पानी पीकर जीवित रहते हैं और सबमें एक
ही ज्योति (प्रकाश) समाई हुई है।
एकै खाक गढ़े सब भांड़ैं एकै कोहरा सांनां।।
सब एक ही मिट्टी से बनाए गए बर्तन हैं और
सबको एक ही कुंभकार ने बनाया है। इसका
भाव है-सब एक ही तत्त्व से बने हैं और सबको
बनाने वाला वही एक ईश्वर है। वह सबमें व्याप्त (उपस्थित) है।
जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटे कोई।
लकड़ी का कोई बड़ा टुकड़ा जल सकता
है, क्योंकि
माना जाता है कि लकड़ी में पहले से ही आग
मौज़ूद होती है, इसी कारण वह जल पाता है।
बढ़ई यदि उस लकड़ी को काट कर
टुकड़े-टुकड़े
कर दे तो भी वे टुकड़े जल सकते हैं। उनके टुकड़े-टुकड़े
होने पर उनमें मौज़ूद आग का विनाश नहीं
होता हे।
सब घटि अंतरि तूंही व्यापक धरै सरूपै सोई।।
उसी प्रकार ईश्वर सभी जीवों के शरीरों के भीतर उन्हीं जीवों का
स्वरूप धारण करके व्याप्त (मौज़ूद/उपस्थित) है।
मनुष्य में ईश्वर मनुष्य के रूप में है, कुत्ते में ईश्वर कुत्ते
के रूप में है, हाथी में ईश्वर हाथी के रूप में है, पेड़-पौधों
में ईश्वर पेड़- पौधों के रूप है। जीवों के शरीर के नष्ट होने पर
भी आत्मा/परमात्मा का विनाश नहीं होता है।
ईश्वर लकड़ी में अग्नि की तरह है।
माया देखि के जगत लुभांना
काहे रे नर गरबांनां।
माया ईश्वर की शक्ति है, जिसके कारण संसार में द्वैत
दिखाई देता है, सारे भेद-भाव दिखाई देते हैं, आत्मा
और ईश्वर को हम माया के कारण अलग-अलग मान
लेते हैं, संसार और ईश्वर को हम अलग-अलग मान
लेते हैं। इससे अहंकार उत्पन्न होता है और मनुष्य
संसार से लोभित होकर भ्रम में पड़ा रहता है।
कबीर कहते हैं-हे मनुष्य, तू अहंकार क्यों करता है!
निरभै भया कछू नहिं ब्यापै कहै कबीर दिवानां।।
जब मनुष्य आत्मा और ईश्वर के अद्वैत (एकत्त्व) को जान लेता है
तो वह निर्भय हो जाता है। फ़िर वह जीवन-मरण और तमाम भ्रमों की
व्यापकता या प्रभाव से मुक्त हो जाता है।
यह बात दीवाना कबीर कहता है।
दो कारणों से कबीर स्वयं को दीवाना कहते हैं। पहला कारण है, वे ईश्वर-प्रेम
में दीवाने हैं।
दूसरा कारण यह हो सकता है कि लोग उन्हें दीवाना (पागल) कहते थे क्योंकि उनकी बातें
लोगों को समझ में नहीं आती थीं। बात भी सही है। हम अपने महापुरुषों की बातों को
समझ भी कहां पाते हैं! अगर समझ लेते तो सभी समस्याओं का समाधान हो जाता!
प्रश्न अभ्यास
1. हम तौ एक एक करि जानां- इस पंक्ति में
कौन-सा अलंकार है और क्यों?
2. एकै खाक गढ़े सब भांड़ैं एकै कोहरा सांनां—इस
पंक्ति का क्या अर्थ है?
3. सब घटि अंतरि तूंही व्यापक धरै सरूपै सोई—इस
पंक्ति का क्या आशय है?
4. लकड़ी और अग्नि का उदाहरण देकर कबीर ने
क्या समझाया है?
5. मनुष्य अहंकार क्यों करता है?
6. ईश्वर एक है—कबीर ने कौन-कौन से उदाहरण
देकर सिद्ध किया है?
7. मानव-शरीर का निर्माण किन-किन
पंच-तत्त्वों से हुआ है?
8. कबीर ने स्वयं को दीवाना क्यों कहा है?
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