Friday, September 25, 2020

मियां नसीरुद्दीन -कृष्णा सोबती (XI )

 

मियां नसीरुद्दीन

कृष्णा सोबती

 

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‘मियां नसीरुद्दीन’ एक संस्मरणात्मक शब्दचित्र भी है। दिल्ली में साहित्य, राजनीति, कला के अनेक मसीहा रहते हैं। उन्हीं में एक हैं मियां नसीरुद्दीन, जो नानबाइयों के मसीहा हैं। मसीहा का अर्थ होता है-उद्धार करनेवाला दैवीय व्यक्ति। तरह-तरह की रोटियां बनाना एक कला है और वे इस कला को बचाना चाहते हैं।

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लेखिका एक दिन जामा मस्जिद के पास मटियामहल के गढ़ैया मुहल्ले की तरफ़ गई। वहां एक अंधेरी-सी दूकान में उसने आटा सनते देखा और समझा कि सेवइयां बनाने की तैयारी हो रही होगी, पर पूछने पर पता चला कि वह दूकान खानदानी नानबाई मियां नसीरुद्दीन की थी, जो छप्पन प्रकार की रोटियां बनाने की कला में माहिर थे।

उस समय मियां नसीरुद्दीन खटिया पर बैठे बीड़ी पी रहे थे। स्पष्टत: लग रहा था कि उन्होंने बहुत सारे मौसम देखे हैं। उनके चेहरे पर काइयांपन और भोलेपन के मिले-जुले भाव थे और उनका माथा देख  कर लग रहा था  कि वे मजे हुए कारीगर हैं।

 

जब लेखिका ने उनसे कुछ बातें करनी चाही तो मियां नसीरुद्दीन ने समझा कि वह अखबारनवीस है। मियां नसीरुद्दीन मानते थे कि अखबार छापना और पढ़ना निठल्ले लोगों का काम है।

 

मियां नसीरुद्दीन ने बताया कि तरह-तरह की रोटी बनाने की कला उन्होंने अपने वालिद उस्ताद से सीखी है और उनके गुज़र जाने पर उनकी दूकान उन्होंने संभाल ली। कोई और काम खोजने के लिए घर से निकले ही नहीं।

मियां नसीरुद्दीन के वालिद का नाम मियां बरकत था और वे शाही नानबाई थे। उनके दादा मियां कल्लन आला शाही नानबाई के नाम से मशहूर थे। उन्होंने बताया कि जैसा वालिद उस्ताद ने सिखाया, वैसा ही उन्होंने सीखा। वे मानते हैं कि उस्ताद कई बार अपने शागिर्द को दंड भी देता है, जो ज़रूरी है। कोई भी काम सीखने के लिए शुरू से शुरू करना पड़ता है। कोई सीधे ऊंची कक्षा में नहीं पहुंच जाता है। इस प्रकार तालीम  की भी तालीम होती है। बड़ी तालीम (शिक्षा) प्राप्त करने से पहले और भी तालीम (तैयारी) लेनी पड़ती है। उनकी प्रगति में खोमचा (छोटे पैमाने पर काम करना) लगाना भी शामिल है। उन्होंने भी बरतन धोना, भठ्ठी बनाना, भठ्ठी सुलगाना सीखा था।

वे लेखिका को बताते हैं कि उनके इलाके में अनेक नानबाई हैं, पर कोई खानदानी और बादशाह के बावर्चीखाने से संबंध रखने वाले के खानदान से नहीं है। यह पूछने पर कि उनके बुज़ुर्गों ने किस बादशाह के बावर्चीखाने में काम किया था तो मियां नसीरुद्दीन ने लेखिका की बातों में रुचि लेनी बंद कर दी और दूकान में काम करनेवालों को निर्देश देने लगे। स्पष्ट था कि उन्हें बादशाह का नाम नहीं पता था और वे अपने पूर्वजों की प्रशंसा में कुछ ज्यादा ही बोल रहे थे।

लेखिका के यह पूछने पर कि ये काम करने वाले उनके शागिर्द हैं क्या, तो नसीरुद्दीन ने कहा कि वे उन्हें मज़दूरी देते हैं। लेखिका उनके बेटे-बेटियों के बारे में भी पूछना चाहती थी, पर उनके चेहरे के भाव देखकर उसने नहीं पूछा।

भठ्ठी पर कौन-कौन सी रोटियां बनती हैं? इस सवाल के ज़वाब में उन्होंने बाकरखानी, शीरमाल, ताफ़तान, बेसनीम खमीरी, रूमाली गाव, दीदा, गाज़ेबान, तुनकी आदि रोटियों के नाम बताए।

मियां नसीरुद्दीन  को इस बात का अफ़सोस है कि रोटियां बनाने की कला की कद्र करनेवाले और तरह-तरह की रोटियां बनाने की कला जानने वाले कम होते जा रहे हैं। इसी कारण रोटी बनाने की कला भी समाप्त होती जा रही है।

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शब्दार्थ

 

नानबाई-रोटी बनाने व बेचनेवाला

काइयां-चालाक

पेशानी-माथा

तेवर- मुद्रा/भाव

पंचहजारी- पांच हजार सैनिकों के मनसबदार की तरह

अखबारनवीस-पत्रकार

इल्म- ज्ञान

आंखों के कंचे-आंखों की पुतलियां

नगीनासाज़- अंगूठी आदि के नग लगानेवाला

आईनासाज़- दर्पण/मिरर बनाने वाला

मीनासाज़-सोने-चांदी के आभूषण पर रंग करने वाला

रफ़ूगर-फटे कपड़ों को उसी रंग के धागे पहले जैसा बनानेवाला

रंगरेज-कपड़े रंगनेवाला

तंबोली- तांबुल (पान) लगाने-बेचनेवाला

फ़रमाना-कहना

मरहूम-स्वर्गवासी/दिवंगत

उठ जाना- देहांत हो जाना

ठीया-स्थान

लमहा-क्षण

आला-बड़ा/अदना-छोटा

नसीहत-सीख/शिक्षा/उपदेश

बजा फ़रमाया-सही कहा

शागिर्द-शिष्य

परवान-प्रगति/उन्नति

मदरसा-विद्यालय

कच्ची- एल केजी/ यू केजी आदि

जमात-कक्षा/श्रेणी

ज़हमत उठाना-कष्ट करना

वालिद-पिता/वालिदा-माता

उस्ताद-गुरु/सिखानेवाला/ज्ञानी

अख्तियार करना-स्वीकार करना/अपनाना

हुनर-कला

कूच करना-रवाना होना (यहां-देहांत होना)

मोहलत-समय/अवकाश

मज़मून-कथन/विषय/बात

शाही-बादशाह से संबंधित

बावर्चीखाना-रसोई

बेरुखी-उपेक्षा

रुक्का-चिठ्ठी/पत्र

अंधड़-आंधी

आसार-संभावना

गुमशुदा-खोई हुई (यहां भूली हुई)

कद्रदान-प्रशंसक

प्रश्न अभ्यास 

1.     मसीहा का क्या अर्थ है?

2.     मियां नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा क्यों कहा गया है?

3.     लेखिका मियां नसीरुद्दीन से बात करने  को उत्सुक क्यों हो गई?

4.     स्वयं को खानदानी नानबाई साबित करने के लिए मियां नसीरुद्दीन ने कौन-सी कहानी सुनाई?

5.     बादशाह का नाम पूछने पर लेखिका की बातों  में मियां नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों कम हो गई?

6.     मियां नसीरुद्दीन की कौन-सी बात आपको सबसे ज्यादा अच्छी लगी और क्यों?

7.     ‘तालीम की तालीम भी बड़ी चीज़ होती है।’ इस कथन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

8.     मियां नसीरुद्दीन को किस बात का अफ़सोस है?

9.     मियां नसीरुद्दीन का शब्दचित्र 50-60 शब्दों में प्रस्तुत करिए।

10. ‘वर्तमान  समय में अखबार/जनसंचार माध्यमों की भूमिका’ पर एक 150 शब्दों में आलेख लिखिए।

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राजेश प्रसाद                व्हाट्सऐप 9407040108           psdrajesh@gmail.com

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