भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ -लता मंगेशकर
कुमार गंधर्व
श्रेष्ठ शास्त्रीय गायक कुमार
गंधर्व का जन्म 1924 ई. में कर्नाटक के बेलगाँव जिले में ।
बचपन से संगीत के प्रति समर्पित।
दस वर्ष की उम्र में गायकी की पहली मंचीय प्रस्तुति।
मालवा की लोकधुनों और
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का सुंदर सामंजस्य। कबीर के पदों का संग्रह करके उन्हें
स्वरों में बाँधकर प्रस्तुत किया।
कालिदास सम्मान और पद्मविभूषण सहित
बहुत-से सम्मानों से अलंकृत।
देहावसान 1992 ई. में।
भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ - लता मंगेशकर में लेखक ने स्वर-
साम्राज्ञी लता मंगेशकर की गायकी पर अपना विचार प्रस्तुत किया है। शास्त्रीय संगीत
और फिल्मी संगीत को एक स्तर पर रखने का प्रयास किया है और संगीत के मूल उद्देश्य‘आनन्द’
को सामने रखा है। कुमार गन्धर्व ने यह लेख मूल रूप से हिंदी में ही लिखा है।
सारांश
लेखक बरसों पहले जब बीमार था तो एक दिन उसे रेडियो पर अद्वितीय और अंतर्मन को
छूनेवाला स्वर सुनाई दिया। गाना समाप्त
होने पर गायिका का नाम लता मंगेशकर घोषित किया गया। उसे लगा कि प्रसिद्ध गायक
दीनानाथ मंगेशकर की अजब गायकी ही उनकी बेटी की आवाज में प्रकट हुई है। यह शायद ‘बरसात’ फिल्म से पहले की किसी फिल्म का गाना था। लता के पहले प्रसिद्ध गायिका
नूरजहाँ का चित्रपट संगीत में अपना जमाना था, परंतु लता उससे
आगे निकल गई।
लेखक कहता है कि लता के बराबर की गायिका कोई नहीं हुई। लता ने चित्रपट संगीत
को लोकप्रिय बनाया। चित्रपट संगीत के विविध प्रकारों को आम आदमी समझने लगा है तथा
गुनगुनाने लगा है। लता ने नयी पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया तथा आम आदमी में
संगीत विषयक अभिरुचि पैदा करने में योगदान दिया। आम श्रोता शास्त्रीय गायन व लता
के गायन में से लता की ध्वनि मुद्रिका (ग्रामोफोन का रिकार्ड) को पसंद करेगा।
आम आदमी को राग के प्रकार, ताल आदि से कोई मतलब नहीं होता। उसे केवल मस्त कर देने वाली
मिठास चाहिए। लता के गायन में वह गानपन सौ फीसदी मौजूद है। लता के गायन की एक और
विशेषता है-स्वरों की निर्मलता। नूरजहाँ के गानों में मादकता थी, परंतु लता के स्वरों में कोमलता और मुग्धता है। यह अलग बात है कि संगीत
दिग्दर्शकों ने उसकी इस कला का भरपूर उपयोग नहीं किया है। लता के गाने में एक
नादमय उच्चार है। उनके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अंतर स्वरों के आलाप द्वारा
सुंदर रीति से भरा रहता है। दोनों शब्द एक-दूसरे में विलीन होते प्रतीत होते हैं।
लेखक का मानना है कि लता के करुण रस के गाने ज्यादा अच्छे नहीं हैं, उसने मुग्ध श्रृंगार की अभिव्यक्ति करने वाले मध्य या द्रुतलय के गाने
अच्छे तरीके से गाए हैं। अधिकतर संगीत दिग्दर्शकों ने उनसे ऊँचे स्वर में गवाया
है।
लेखक का मानना है कि शास्त्रीय संगीत व चित्रपट संगीत में तुलना करना निरर्थक
है। शास्त्रीय संगीत में गंभीरता स्थायी भाव है, जबकि चित्रपट संगीत में तेज लय व चपलता प्रमुख
होती है। चित्रपट संगीत व ताल प्राथमिक अवस्था का होता है और शास्त्रीय संगीत में
परिष्कृत रूप। चित्रपट संगीत में आधे तालों, आसान लय,
सुलभता व लोच की प्रमुखता आदि विशेषताएँ होती हैं। चित्रपट संगीत
गायकों को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी अवश्य होनी चाहिए। लता के पास यह
ज्ञान भरपूर है।
लता के तीन-साढे तीन मिनट के गाने और तीन-साढे तीन घटे की शास्त्रीय महफिल का
कलात्मक व आनंदात्मक मूल्य एक जैसे हैं। उसके गानों में स्वर, लय व शब्दार्थ
का संगम होता है। गाने की सारी मिठास, सारी ताकत उसकी रंजकता
पर आधारित होती है और रंजकता का संबंध रसिक को आनंदित करने की सामर्थ्य से है। लता
का स्थान अव्वल दरजे के खानदानी गायक के समान है। प्रश्न है कि क्या लता शास्त्रीय
गायकों की तीन घंटे की महफिल जमा सकती है? लेखक उसी से
प्रश्न करता है कि क्या कोई प्रथम श्रेणी का गायक तीन मिनट में चित्रपट का गाना
इतनी कुशलता और रसोत्कटता से गा सकेगा? शायद नहीं।
खानदानी गवैयों ने आरोप लगाया है कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए
हैं। पर लेखक का मानना है कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान सुधारे हैं। लेखक कहता
है कि हमारे शास्त्रीय गायक आत्मसंतुष्ट वृत्ति के हैं। वे शास्त्रीयता को
आवश्यकता से अधिक महत्त्व देते हैं, जबकि चित्रपट संगीत लोगों को अभिजात्य
संगीत से परिचित करवा रहा है।
लोगों को सुरीला व भावपूर्ण गाना चाहिए। यह काम चित्रपट संगीत ने किया है।
उसमें लचकदारी है। शास्त्रीय संगीत की मान्यताएँ, मर्यादाएँ, झंझटें
आदि निराली हैं। चित्रपट संगीत में नवनिर्माण की गुंजाइश है और शास्त्रीय रागदारी के अलावा लोकगीतों का
भरपूर प्रयोग किया गया है। चित्रपट संगीत का क्षेत्र विस्तृत है। ऐसे चित्रपट
संगीत की बेताज साम्राज्ञी लता है। उसकी लोकप्रियता अन्य पार्श्व गायकों से अधिक
है। उसके गानों से लोग पागल हो उठते हैं। आधी शताब्दी तक लोगों के मन पर उसका
प्रभुत्व रहा है। यह एक चमत्कार है जो आँखों के सामने है।
शब्दार्थ-1
सहज-स्वाभाविक तन्मयता-तल्लीनता संगति-साथ अजब गायकी-अनोखी गायन शैली चित्रपट-सिनेमा सितारिये-सितारवादक विलक्षण-अनोखा कोकिला-कोयल अनुकरण-नकल करना स्वर मालिकाएँ-स्वरों के क्रमबद्ध समूह लय-धुन आकारयुक्त-विशेष साँचे में ढली हुई सूक्ष्मता-बारीकी श्रेय-महत्व संस्कारित-सुधरा हुआ विषयक-संबंधी अभिरुचि-रुचि ध्वनि मुद्रिका-ग्रामोफोन का रिकार्ड |
शास्त्रीय गायकी-निर्धारित नियमों के अंदर गाया जाने वाला गायन मालकोंस-एक राग ताल त्रिताल-एक ताल गानपन-आम आदमी को भावविभोर करने वाला गाने का अंदाज मर्म-रहस्य निर्मलता-त्रुटिहीन, पवित्रता उत्तान-ऊँची तान पार्श्व गायिका-परदे के पीछे गाने वाली मुग्धता-रीझने का गुण दिग्दर्शक-निर्देशक नादमय उच्चार-गूंज भरा उच्चारण द्रुतलय-तेज धुन उत्कटता-तेजी, व्यग्रता ऊँची पट्टी-ऊँचे स्वरों का प्रयोग प्रयोजनहीन-बिना किसी उद्देश्य के जलदलय-तेज लय |
चपलता-चुलबुलापन गुणधर्म-स्वभाव स्थायी भाव-मन में स्थायी रूप से रहने वाला भाव प्राथमिक अवस्था-आरंभिक दशा परिष्कृत-सँवारा हुआ आघात-चोट लोच-स्वरों का बारीक मनोरंजक प्रयोग नि:संशय-निस्संदेह। सुभाषित-सूक्ति परिपूर्णता-संपूर्णता दृष्टिगोचर-दिखाई देना रंगदार-आकर्षक आस्वादित-चखा हुआ त्रिवेणी संगम-तीन धाराओं का मेल रसिक-रस लेने वाला रंजक-दिल को लुभाने वाला नीरस-रसहीन अनाकर्षक-आकर्षण रहित |
शब्दार्थ-2
रंजकता-रिझाने की शक्ति अवलंबित-टिकी हुई सुसंवाद साधना-आपस में तालमेल बिठाना समाविष्ट-शामिल तैलचित्र-तैलीय रंगों से बनाया हुआ चित्र सुसंगत अभिव्यक्ति-तालमेल से युक्त अभिव्यक्ति अव्वल-प्रथम, उच्च कोटि संशय-संदेह रसोत्कटता-रस से सराबोर होना कान बिगाड़ना-सुनने की रुचि को गिराना पुनरुक्ति-दोबारा कहना वृत्ति-भावना हुकुमशाही-अधिकार शासन कर्मकांड-रूढ़ियाँ अभिजात्य-कुलीन वर्ग से संबंधित |
क्रांति-पूरा बदलाव रागदारी-रागों की रचना कौतुक-आश्चर्यजनक खेल रूक्ष-रूखा। निर्जल-जल से रहित पर्जन्य-बरसने वाला बादल। खोर-गली प्रतिध्वनित-गूँजने वाला कृषिगीत-खेती से संबंधित गीत अतिशय-अत्यधिक मार्मिक-मर्म को छूने वाला विस्तीर्ण-व्यापक अलक्षित-जिसकी तरफ ध्यान न गया हो अदृष्टि पूर्व-अनोखा अनभिषिक्त-जिसका अभिषेक न किया गया हो साम्राज़ी-रानी अबाधित-बेरोकटोक |
जन-मन-लोगों का हृदय सतत-लगातार प्रभुत्व-अधिकार चित्रपट-फ़िल्म |
महत्त्वपूर्ण
प्रश्न
1.लेखक ने पाठ में गानपन का उल्लेख किया है। पाठ के संदर्भ में
स्पष्ट करते हुए बताएँ कि आपके विचार में इसे प्राप्त करने के लिए किस प्रकार के
अभ्यास की आवश्यकता है?
उत्तर –
‘गानपन’ का अर्थ है-गाने से मिलने वाली मिठास
और मस्ती। जिस प्रकार ‘मनुष्यता’ नामक
गुणधर्म होने के कारण हम उसे मनुष्य कहते हैं, उसी प्रकार गीत में ‘गानपन’ होने पर ही उसे संगीत कहा जाता है। लता के
गानों में शत-प्रतिशत गानपन मौजूद है तथा यही उनकी लोकप्रियता का कारण है।
गानों में गानपन प्राप्त करने के लिए नादमय उच्चार करके गाने का अभ्यास, स्वरों
के उचित ज्ञान और आवाज में स्पष्टता व निर्मलता होनी चाहिए। श्रोताओं को आनंदित
करने के लिए रस के अनुसार स्वर, लय व अर्थ का संगम होना आवश्यक है। रागों की शुद्धता पर जोर न
देकर गाने को मिठास व स्वाभाविकता के साथ गाया जाना चाहिए।
2.लेखक ने लता की गायकी की किन
विशेषताओं को उजागर किया है? आपको लता की गायकी में कौन-सी विशेषताएँ नजर आती हैं? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर –
लेखक ने लता की गायकी की निम्नलिखित विशेषताओं को उजागर किया है
1. सुरीलापन-लता के गायन में
सुरीलापन है। उनके स्वर में अद्भुत मिठास, तन्मयता, मस्ती तथा लोच हैं, उनके उच्चारण में मधुर गूंज है।
2. स्वरों की निर्मलता-लता के स्वरों
में निर्मलता है। लता का जीवन की ओर देखने का जो दृष्टिकोण है, वही उसके गायन की निर्मलता में झलकता है।
3. कोमलता और मुग्धता-लता के स्वरों
में कोमलता व मुग्धता है। इसके विपरीत नूरजहाँ के गायन में मादक उत्तान दिखता था।
4. नादमय उच्चार-यह लता के गायन
की अन्य विशेषता है। उनके गीत के किन्हीं दो शब्दों का समय स्वरों के आलाप द्वारा
सुंदर रीति से भरा रहता है। ऐसा लगता है कि वे दोनों शब्द विलीन होते-होते
एक-दूसरे में मिल जाते हैं। लता के गानों में यह बात सहज है।
5. शास्त्र-शुद्धता-लता के गीतों
में शास्त्रीय शुद्धता है। उन्हें शास्त्रीय संगीत की जानकारी है। उनके गीतों में
रंजकता भी पाई जाती है। हमें लता की गायकी में उपर्युक्त सभी विशेषताएँ नजर आती
हैं।
6. उन्होंने भक्ति, देश-प्रेम,
श्रृंगार तथा विरह आदि हर भाव के गीत गाए हैं। वास्तव में, गायकी के क्षेत्र में लता सर्वश्रेष्ठ हैं।
3.लता ने करुण रस के गानों के साथ
न्याय नहीं किया है, जबकि श्रृंगारपरक गाने वे बड़ी उत्कटता से गाती हैं-इस कथन से आप कहाँ तक
सहमत हैं?
उत्तर –
एक संगीतज्ञ की दृष्टि से कुमार गंधर्व की टिप्पणी सही हो सकती है,
परंतु लता ने करुण रस के गाने भी बड़ी उत्कटता के साथ गाए हैं। उनके
गीतों में मार्मिकता है तथा करुणा छलकती है। करुण रस के गाने आम मनुष्य से सीधे
नहीं जुड़ते। लता के करुण रस के गीतों से मन भावुक हो उठता है। ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ और फिल्म ‘रुदाली’ का गीत ‘दिल हुम-हुम
करे’ हृदय टीस उत्पन्न कर देता है। अत: यह सही नहीं है कि
लता ने करुण रस के गीतों के साथ न्याय नहीं किया है।
4.संगीत का
क्षेत्र ही विस्तीर्ण हैं। वहाँ अब तक अलक्षित, असशोधित और अदूष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा
प्राप्त है तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे
हैं-इस कथन को वर्तमान फ़िल्मी संगीत के
संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
यह सही है कि संगीत का क्षेत्र बहुत विशाल है, इसमें अनेक संभावनाएँ छिपी हुई हैं। यह ऐसा क्षेत्र है जहाँ हर रोज नए
स्वर, नए यंत्रों व नई तालों का प्रयोग किया जाता है।
चित्रपट संगीत आम व्यक्ति का संगीत है। इसने लोगों को सुर, ताल,
लय व भावों को समझने की समझ दी है। आज चित्रपट संगीत शास्त्रीय
संगीत का सहारा भी ले रहा है। लोकगीतों को बड़े स्तर पर अपना रहा है। चित्रपट संगीतकारों
ने पंजाबी लोकगीत, राजस्थानी, पहाड़ी,
कृषि गीतों का प्रयोग करना शुरू कर दिया है। पाश्चात्य संगीत का
लोकगीतों के साथ मेल किया जा रहा है। कभी तेज संगीत तो कभी मंद संगीत लोगों को
मदहोश कर रहा है। इसी तरह फ़िल्मी संगीत नित नए-नए रूपों का प्रयोग कर रहा है।
5.चित्रपट संगीत ने लोगों के कान
बिगाड़ दिए-अकसर यह आरोप लगाया जाता रहा है। इस संदर्भ में कुमार गंधर्व की राय और
अपनी राय लिखें।
उत्तर –
शास्त्रीय संगीत के समर्थक अकसर यह आरोप लगाते हैं कि चित्रपट संगीत
ने लोगों के कान बिगाड़ दिए। कुमार गंधर्व मानते हैं कि चित्रपट संगीत ने लोगों के
कान सुधारे हैं। इसके कारण लोगों को सुरीलेपन की समझ हो रही है। उन्हें तरह-तरह की
लय सुनाई दे रही है। आम आदमी को लय की सूक्ष्मता की समझ आ रही है। इसने आम आदमी
में संगीत विषयक अभिरुचि को पैदा किया है। लेखक ने लोगों का शास्त्रीय संगीत को
देखने और समझने में परिवर्तित दृष्टिकोण का श्रेय लता के गायन दिया है। चित्रपट
संगीत पर हमारी राय कुछ अलग है। पुरानी जमाने के चित्रपट संगीत ने सुरीलापन दिया। परंतु
आज का चित्रपट संगीत तेज भागती जिंदगी की तरह हो गया है।
6.शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्व का आधार क्या होना चाहिए? कुमार गंधर्व की इस संबंध में क्या राय है? स्वयं आप क्या सोचते हैं?
उत्तर –
कुमार गंधर्व का स्पष्ट मत है कि चाहे शास्त्रीय संगीत हो या
चित्रपट संगीत, वही संगीत महत्वपूर्ण माना जाएगा जो रसिकों
और श्रोताओं को अधिक आनंदित कर सकेगा। दोनों प्रकार के संगीत का मूल आधार होना
चाहिए रंजकता। इस बात का महत्त्व होना चाहिए कि रसिक को आनंद देने का सामथ्र्य किस
गाने में कितना है! यदि शास्त्रीय संगीत में रंजकता नहीं है तो वह बिल्कुल नीरस हो
जाएगा। गाने में गानपन का होना आवश्यक है। गाने की सारी मिठास, सारी ताकत उसकी रंजकता पर टिकी रहती है। अत: लेखक का मत बिल्कुल सत्य है।
7.शास्त्रीय संगीत और चित्रपट
संगीत में क्या अंतर है?
उत्तर –
शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत-दोनों का लक्ष्य आनंद प्रदान करना
है, फिर भी दोनों में अंतर है। शास्त्रीय संगीत में गंभीरता
होती है। गंभीरता इसका स्थायी भाव है, जबकि चित्रपट संगीत का
गुणधर्म चपलता व तेज लय है। शास्त्रीय संगीत में ताल अपने परिष्कृत रूप में पाया
जाता है, जबकि चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का ताल
होता है। शास्त्रीय संगीत में तालों का पूरा ध्यान रखा जाता है, जबकि चित्रपट संगीत में आधे तालों का उपयोग होता है। चित्रपट संगीत में
गीत और आघात को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है, सुलभता तथा लोच
को महत्त्व दिया जाता है। पर चित्रपट संगीत के लिए शास्त्रीय संगीत की उत्तम
जानकारी होना आवश्यक है। तीन-साढ़े तीन मिनट के गाए हुए चित्रपट के किसी गाने का
और एकाध खानदानी शास्त्रीय गायक की तीन-साढे तीन घटे की महफिल का कलात्मक व
आनंदात्मक मूल्य एक ही है।
8.लेखक लता के संगीत से कब स्वयं
को जुड़ा महसूस करने लगे?
उत्तर –
लेखक वर्षों पहले बीमार थे। उस समय उन्होंने रेडियो पर अद्वतीय स्वर
सुना। यह स्वर सीधे उनके हृदय तक जा पहुँचा। उन्होंने तन्मयता से पूरा गीत सुना।
उन्हें यह स्वर आम स्वरों से विशेष लगा। गीत के अंत में जब रेडियो पर गायिका के
नाम की घोषणा हुई तो उन्हें मन-ही-मन संगति पाने का अनुभव हुआ। वे सोचने लगे कि
सुप्रसिद्ध गायक दीनानाथ मंगेशकर की अजब गायकी एक दूसरा स्वरूप लिए उन्हीं की बेटी
की कोमल आवाज में सुनने को मिली है।
9.लता के
नूरजहाँ से आगे निकल जाने का क्या कारण है?
उत्तर –
लता मंगेशकर प्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ के बहुत बाद में आई, परंतु शीघ्र ही उनसे आगे निकल गई। नूरजहाँ के गीतों में मादक उत्तान था जो
मनुष्य को जीवन से नहीं जोड़ता था। लता के स्वरों में कोमलता, निर्मलता व मुग्धता थी। जीवन के प्रति दृष्टिकोण उनके गीतों की निर्मलता
में दिखता है।
10.शास्त्रीय गायकों पर लेखक ने
क्या टिप्पणी की है?
उत्तर –
लेखक कहता है कि शास्त्रीय गायक आत्मसंतुष्ट प्रवृत्ति के हैं।
उन्होंने संगीत के क्षेत्र में अपनी हुकुमशाही स्थापित कर रखी है। उन्होंने
शास्त्र शुद्धता को जरूरत से ज्यादा महत्त्व दे रखा है। वे रागों की शुद्धता पर
जोर देते हैं।
11.चित्रपट संगीत के विकसित होने
का क्या कारण है?
उत्तर –
चित्रपट संगीत के विकसित होने का कारण उसकी प्रयोग धर्मिता है। यह
संगीत आम आदमी की समझ में आ रहा है। इस संगीत को सुरीलापन, लचकदारी
आदि ने लोकप्रिय बना दिया है। इन्होंने शास्त्रीय संगीत की रागदानी भी अपनाई है,
वहीं राजस्थानी, पहाड़ी, पंजाबी, बंगाली, लोकगीतों को
भी अपनाया है। दरअसल यह विभिन्नता में एकता का प्रचार कर रहा है। इसके माध्यम से
लोग अपनी संस्कृति से परिचित हो रहे हैं।
12.लता की गायकी से संगीत के प्रति
आम लोगों की सोच में क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर –
लता की गायकी के कारण चित्रपट संगीत अत्यधिक लोकप्रिय हुआ है। अब वे
संगीत की सूक्ष्मता को समझने लगे हैं। वे गायन की मधुरता, मस्ती
व गानपन को महत्व देते हैं। आज के बच्चे पहले की तुलना में सधे हुए स्वर से गाते
हैं। लता ने नई पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया है। आम लोगों का संगीत के विविध
प्रकारों से परिचय हो रहा है।
13.कुमार गंधर्व ने लता जी की
गायकी के किन दोषों का उल्लेख किया है?
उत्तर –
कुमार गंधर्व का मानना है कि लता जी की गायकी में करुण रस विशेष
प्रभावशाली रीति से व्यक्त नहीं होता। उन्होंने करुण रस के साथ न्याय नहीं किया।
दूसरे, लता ज्यादातर ऊँची पट्टी में ही गाती
हैं जो चिल्लाने जैसा होता है।
14.शास्त्रीय
संगीत की तीन-साढ़े तीन घंटे की महफिल और चित्रपट संगीत के तीन मिनट के गान का
आनंदात्मक मूल्य एक क्यों माना गया है?
उत्तर –
लेखक ने शास्त्रीय संगीत की तीन-साढे तीन घटे की महफिल और चित्रपट
संगीत से तीन मिनट के गान का आनंदात्मक मूल्य एक माना है इन दोनों का लक्ष्य
श्रोताओं को आनंदमग्न करना है। तीन मिनट के गाने में स्वर, लय
व शब्दार्थ की त्रिवेणी बहती है। इसमें श्रोताओं को भरपूर आनंद मिलता है।
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और लता मंगेशकर के गीतों का यूट्यूब लिंक भी भेजे जाएंगे। आप उन गीतों को सुनें और
जानें कि आखिर ये महान गायक-गायिका क्यों हैं।
राजेश प्रसाद
व्हाट्सऐप 9407040108 psdrajesh@gmail.com
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