Tuesday, August 25, 2020

नमक का दारोगा - प्रेमचंद

 

नमक का दारोगा

प्रेमचंद

भूमिका

अंग्रेजों ने देश के पूरे व्यापार को अपने कब्ज़े में कर लिया था और सभी छोटी-बड़ी चीज़ों पर कर (टैक्स) लगा दिया था। नमक के उत्पादन और व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करने के लिए अंग्रेजी काल में नमक-विभाग बना। आज़ादी की लड़ाई में गांधी जी ने 1930 में दांडी-यात्रा करके नमक के कानून को तोडा और नमक बनाया। इस कहानी का नायक वंशीधर इसी नमक विभाग में दारोगा के रूप में नियुक्त हुआ था।

सारांश

वंशीधर के पिताजी सरकारी सेवा से निवृत्त हो चुके थे। घर की आर्थिक दशा खराब थी। पिताजी ने वंशीधर को समझाया था कि पद महत्त्वपूर्ण नहीं है, ऊपरी आमदनी महत्त्वपूर्ण है। अत: पद पर ध्यान न देकर ऐसी नौकरी खोजना, जहां रिश्वत मिलती रहे। उन्होंने रिश्वत लेने का तरीका भी बताया था।

वंशीधर को नमक विभाग में दारोगा के रूप में नियुक्ति मिली थी। वे ईमानदार और कर्त्तव्यनिष्ठ व्यक्ति थे।

नमक विभाग का दारोगा बनने के छह महीने बाद की घटना है। वंशीधर का दफ़्तर यमुना नदी के पास था। वहां नावों का पुल बना हुआ था।

एक रात को दारोगा वंशीधर की नींद खुली तो आवाज़ों से उन्हें लगा कि पुल से गाड़ियां (बैलगाड़ियां) गुज़र रही थीं। उन्होंने सोचा कि इतनी रात को गाड़ियां क्यों जा रही हैं! अवश्य ही कोई गड़बड़ी थी। वे तैयार होकर पुल पर पहुंचे। बैलगाड़ियों में नमक के बोरे लदे थे। ज़ाहिर था कि नमक की तस्करी हो रही थी। गाड़ियां पंडित अलोपीदीन की थीं, जो कि उस इलाके के बहुत बड़े ज़मीनदार थे। अंग्रेज़ लोग भी उनके मेहमान होते थे। पंडित अलोपीदीन को धन की शक्ति पर विश्वास था। वे मानते थे कि धन से न्याय और नीति को भी खरीदा जा सकता है। धन के बल पर उन्होंने सबको खरीद लिया था। उन्होंने दारोगा वंशीधर के सामने एक हज़ार रुपए की रिश्वत का प्रस्ताव रखा, जिसे वंशीधर ने अस्वीकार कर दिया। धीरे-धीरे वे चालीस हज़ार रुपए तक देने के लिए भी तैयार हो गए, पर वंशीधर ने स्वीकार नहीं किया और जमादार बदलू सिंह को आदेश दिया कि पंडित अलोपीदीन को गिरफ़्तार कर लिया जाए। अलोपीदीन के जीवन में यह पहला अवसर आया था, जब धन काम नहीं आया। वे मूर्च्छित होकर गिर पड़े।

अगले दिन अलोपीदीन को न्यायालय में पेश किया गया। वंशीधर ने स्पष्ट रूप से पक्षपात होते देखा। गवाह भी मुकर गए। न्यायालय भी वंशीधर से नाराज़ लग रहा था।

मजिस्ट्रेट ने अलोपीदीन को आरोपमुक्त करते हुए कहा कि उनके जैसा बड़ा आदमी थोड़े से लाभ के लिए नमक की तस्करी जैसा अपराध नहीं कर सकता। मजिस्ट्रेट ने वंशीधर की प्रशंसा की, किन्तु कहा कि उसे अपने कर्त्तव्य के पालन में सावधानी बरतनी चाहिए। ईमानदारी के जोश में होश नहीं खोना चाहिए।

एक सप्ताह बाद वंशीधर को नौकरी से निकाले जाने का आदेश मिल गया। उनकी ईमानदारी और कर्त्तव्यनिष्ठा काम नहीं आई।

उधर घर में वंशीधर के पिताजी इस बात से पहले से ही नाराज़ थे कि वंशीधर रिश्वत नहीं लेते हैं और सूखी तन्ख्वाह से ज़िन्दगी गुज़ारनी पड़ रही थी। पर जब नौकरी से निकाले जाने के बाद वंशीधर घर पहुंचे तो पिताजी ने सिर पीट लिया और वंशीधर को बहुत भला-बुरा कहा। वंशीधर की माता की इच्छा थी कि वे जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम की तीर्थयात्राएं करें, जिसपर पानी फ़िर गया था। वंशीधर की पत्नी ने भी पति से सीधे मुंह कई दिनों तक बात नहीं की।

एक हफ़्ते बाद एक शाम  को  पंडित अलोपीदीन वंशीधर के घर पहुंचे। वंशीधर ने सोचा था कि वे लज्जित करने के लिए आए होंगे। वंशीधर के पिताजी पंडित अलोपीदीन की चापलूसी करने लगे, जो वंशीधर को अच्छी नहीं लगी। पर पंडित अलोपीदीन ने वंशीधर को अपनी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त करने की बात कही। छह हज़ार रुपये सालाना वेतन, घोड़ा, बंगला और रोज़ के खर्चे अलग। पहले तो वंशीधर ने मना किया, पर अलोपीदीन के बहुत जोर देने पर वंशीधर ने नियुक्ति के कागज़ पर हस्ताक्षर कर दिए। अलोपीदीन ने वंशीधर को गले लगा लिया।

बेईमान लोगों को भी ईमानदार सेवक और साथी की आवश्यकता पड़ती है!

शब्दार्थ

ईश्वरप्रदत्त- ईश्वर द्वारा दी गई

निषेध-मनाही

सूत्रपात-शुरुआत

पौ-बारह होना-मज़े होना

बरकंदाज़ी-बंदूक लेकर चलना

प्राबल्य-प्रबलता, वर्चस्व

फ़ारसीदां-फ़ारसी जानने वाले

मालिक-मुख्तार-मालिक-नियंत्रक

ओहदा-पद

लुप्त-गायब

पीर की मज़ार-मुसलमान संत की कब्र

बरकत-प्रगति, उन्नति

पथप्रदर्शक-रास्ता दिखानेवाला

आत्मावलम्बन-आत्म+अवलंबन=स्वयं का सहारा

 

शकुन-मुहूर्त

सुख-संवाद-सुखी करनेवाला  समाचार

महाजन-उधार देनेवाले

कलवार-शराब-विक्रेता

आशालता-आशा की लता/बेल

शूल-पीड़ा

किवाड़-दरवाज़ा

कोलाहल-हल्ला-गुल्ला

ऋणी-जिसपर उधार हो

ऐश्वर्य-ठाठ-बाट

मोहिनी-मोहित करनेवाली

स्तम्भित-अवाक और निश्चल

उद्दंड-लिहाज़ न करनेवाला

अल्हड़-चंचल

दीनभाव-गरीब-कमज़ोर होने का भाव

सांख्यिक शक्ति-संख्या की शक्ति

बुद्धिहीन दृढ़ता-ज़िद, हठ

देव-दुर्लभ-जो देवताओं में भी न हो

अलौकिक-जैसा इस संसार में न दिखे

बहुसंख्यक-संख्या में ज्यादा होना

हृष्ट-पुष्ट-मज़बूत और शक्तिशाली

कातर-भयभीत

कल्पित रोज़नामचा-झूठी डायरी

दस्तावेज़-कागज़ात

अभियुक्त- आरोपी

ग्लानि-अपराध-बोध

कदाचित-शायद

व्यग्र-उत्सुक

अगाध-बहुत गहरा

अमले-अमला, स्टाफ़

अरदली-आदेश का पालने करनेवाले

मोल-मूल्य

विस्मित-चकित

असाध्य-जो किया न जा सके

अनन्य-इकलौता

वाचालता-बहुत ज्यादा बोलना

निमित्त-के लिए

तज़वीज़- निर्देश

निर्मूल- जिसका आधार न हो

भ्रमात्मक-भ्रम से भरा

स्वजन-अपने जन/लोग

गर्वाग्नि-गर्व की अग्नि

प्रज्ज्वलित-जल उठी

खेदजनक-जो अफ़सोस पैदा करे

उपाधियां-डिग्रियां

मुअत्तली-निकाला जाना

परवाना-आदेश-पत्र

भग्न-टूटा

व्यथित-व्यथा/दुख से भरा

 

 

ओहदेदार-अधिकारी/अफ़सर

दुरावस्था-बुरी अवस्था

पछहिए-पश्चिम का

अगवानी-स्वागत

दंडवत-खड़े होकर प्रणाम करना

वात्सल्य-छोटों के प्रति स्नेह

कुलतिलक-कुल/परिवार का सम्मान बढ़ानेवाला

पुरखों-पूर्वजों

कीर्ति-प्रसिद्धि

उज्ज्वल-उजला, प्रकाशित

स्वेच्छा-स्व+इच्छा-अपनी इच्छा

विनय-प्रार्थना

ठकुरसुहाती-जो मालिक/शक्तिशाली व्यक्ति को अच्छा लगे

अविनय- उद्दंडता

विनीत-प्रार्थना के भाव से

त्रुटि-गलती

कृतज्ञता-धन्यवाद का भाव

सामर्थ्य-क्षमता

कीर्तिवान-जो प्रसिद्ध हो

मर्मज्ञ-रहस्य/मर्म को जानने वाला

बेमुरौवत-जो संकोच न करे

हृदय का संकुचित पात्र-छोटा हृदय

 

 

प्रश्न अभ्यास

कुछ प्रश्नों के उत्तर और कुछ के उत्तर संकेत दिए गए हैं।

1.    कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों?
उत्तर-संकेत-
मुंशी वंशीधर। क्योंकि वे थे। आर्थिक दशा खराब होने पर भी ईमानदार, कर्तव्य-परायण, और धर्मनिष्ठ बने रहे। परिणाम की चिन्ता किए बिना ऊपरी आमदनी की पिता की सीख न मानी।

2.    नमक का दरोगाकहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन-से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं?

उत्तर संकेत-

पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के दो पहलू-

क. लक्ष्मी के उपासक। उन्होंने सबको खरीद लिया है। कुशल वक्ता हैं। वे नमक की तस्करी करते हैं। पकड़े जाने पर धन के बल पर स्वयं को रिहा करवा लेते हैं और वंशीधर को नौकरी से हटवा देते हैं।

ख.  ईमानदारी और अन्य गुणों के ग्राहक । ईमानदार वंशीधर को अपनी जायदाद का स्थायी मैनेजर बनाना व उनका मान-सम्मान करना। बदले की बात न सोचना।


3.    कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी-न-किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उस अंश को उदधृत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं-

(क) वृद्ध मुंशी
(ख) वकील
(ग) शहर की भीड़

उत्तर-संकेत-
(क) वृद्ध मुंशी – जीवन के कठोर अनुभव से परिचित। व्यावहारिक।

कमजोर आर्थिक दशा के कारण बेटे को भी गलत राह पर चलने की सलाह देने वाले।  

(ख) वकील – न्याय और विद्वता, लंबी-चौड़ी उपाधियाँ, बड़ी-बड़ी दाढ़ियाँ और न्यायालय का चोंगा पहनने के बावज़ूद समाज में झूठ और फ़रेब का व्यापार करके सच्चे लोगों को सजा और झूठों के पक्ष में न्याय दिलवाने को तत्पर।

 

(ग) शहर की भीड़ – व्यर्थ की बातों में व्यस्त। स्वयं भ्रष्टाचार में लिप्त, पर भ्रष्टाचार का तमाशा देखने को आतुर। दूसरों के विषय में बातें और टीका-टिप्पणी

 

3. निम्नांकित पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए-
नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता हैं और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत हैं जिससे सदैव प्यास बुझती हैं। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्ध नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती हैं, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊं!

(क) यह किसकी उक्ति है?
(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है?
(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं?

उत्तर संकेत-

 (क)पिता।
(ख)  महीने में एक बार। फ़िर घटता जाता है। अंत में समाप्त।

(ग)  असहमत, क्योंकि पिता पुत्र को भ्रष्टाचरण की सलाह दे रहा है।

 

4.    कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को मैनेजर नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? तर्क सहित- उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते?
उत्तर-संकेत
निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-

(क) भ्रष्ट व्यक्ति को भी ईमानदार व्यक्ति की आवश्यकता होती है।

(ख) अलोपीदीन की आत्मग्लानि/अपराध-बोध- ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति की नौकरी जाने का अफ़सोस।

मैं इस कहानी का अंत इस प्रकार करता/करती..... (सोचकर 30-40 शब्दों में लिखिए)

5.    दारोगा वंशीधर गैरकानूनी कहानी के अंत में पंडित अलोपीदीन के यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है। आपके विचार से वंशीधर का ऐसा करना उचित था? आप उसकी जगह होते तो क्या करते?
उत्तर संकेत-
वंशीधर सत्यनिष्ठ व ईमानदार। अलोपीदीन/नमक विभाग/न्यायालय/ पुलिस विभाग आदि के भ्रष्टाचार से कोई मतलब नहीं। स्वयं को नियंत्रण में रखना, कर्तव्य का ध्यान रखना- ये जरूरी है। कीचड़ में कमल की तरह रहना।

 

6.    लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं।वाक्य समाज में लड़कियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है?
उत्तर संकेत-
समाज में लड़कियों के प्रति उपेक्षा का भाव, जैसे प्रकार खेत में उगी व्यर्थ घास फूस को उखाड़ने में बेकार की मेहनत लगती है, उसी प्रकार तत्कालीन समाज में लड़कियों को पाल-पोसकर ब्याह करना भी मेहनत का कार्य। आज स्थिति बदल चुकी है।

7.    अर्थ स्पष्ट कीजिए।

1. नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर की मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।
2. इस विस्तृत ससार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुद्ध अपनी पथ-प्रदर्शक और आत्मावलबन ही अपना सहायक था।
3. तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया।
4. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं।
5. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी।
6. खेद ऐसी समझ पर, पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया।
7. धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।
8. न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।

उत्तर संकेत-

1. नौकरी में पद को महत्व न देकर उस से होने वाली ऊपर की कमाई पर ध्यान देना चाहिए।
2. इस संसार में व्यक्ति के जीवन संघर्ष में धैर्य, बुद्ध, आत्मावलंबन ही क्रमश: मित्र, पथप्रदर्शक व सहायक का काम करते हैं। हर व्यक्ति अकेला होता है। उसे स्वयं ही कुछ पाना होता है।
3. भ्रमपूर्ण स्थितियों में उलझने पर व्यक्ति तर्क-बुद्धि से भ्रम दूर करता है या संदेह की पुष्टि करता है।
4. धन से न्याय व नीति को भी प्रभावित किया जा सकता है। धन से मनचाहा का न्याय लिया जा सकता है । मनचाही नीतियाँ बनवाई जा सकती हैं।

5. चटपटी और सनसनी फ़ैलाने वाली बातें रातों-रात फैल जाती हैं।
6. वंशीधर ने रिश्वत ठुकराकर नासमझी की। पढ़-लिखकर चालाक नहीं बना।

7. ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के धर्म के कारण कारण वंशीधर ने अलोपीदीन द्वारा चालीस हजार रुपये की रिश्वत को ठुकरा दिया।
8. न्यायालय पर व्यंग्य। धनी व्यक्ति के पक्ष में फ़ैसला होता है। धन सत्य को असत्य और असत्य को सत्य सिद्ध किया जा सकता है। करने में जुट गए। अकेला वंशीधर अपनी ईमानदारी के धर्म के बल पर लड़ रहा था।

 

8.    नमक का दरोगापाठ का प्रतिपाद्य (क्या कहने की कोशिश की है?) बताइए।

या

नमक का दरोगाकहानी धन पर धर्म की विजयकी कहानी है। कैसे?
उत्तर संकेत-
नमक का दरोगाआदर्शवाद और यथार्थवाद का एक उदाहरण। यह कहानी धन के ऊपर धर्म की जीत की कहानी है। पंडित अलोपीदीन धन से और मुंशी वंशीधर धर्म से शक्ति प्राप्त करते हैं। ईमानदार वंशीधर को खरीदने में असफल रहने पर पंडित अलोपीदीन ने धन की शक्ति से अपने पक्ष में निर्णय करवा लिया और वंशीधर को नौकरी से हटवा दिया। अंत में अलोपीदीन सत्य के आगे झुकते हैं। वे वंशीधर को बहुत ऊँचे वेतन पर अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त करते हैं।  अलोपीदीन गहरे अपराध-बोध से निवेदन करते हैं- परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह आपको सदैव वही नदी के किनारे वाला बेमुरौवत, उद्दंड, किंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए रखे।

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राजेश प्रसाद                         व्हाट्सऐप 9407040108                 psdrajesh@gmail.com

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