सहर्ष स्वीकारा है
गजानन माधव मुक्तिबोध
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सहर्ष स्वीकारा है एक प्रेम कविता है।
कवि को अपना पूरा अस्तित्व प्रेमिका से घिरा, ढंका और प्रभावित लगता है।
इस कारण
कवि चिन्तित होता है कि भविष्य में जब उसे प्रेम नहीं मिलेगा तो वह कैसे रह सकेगा।
इसलिए वह खुद को कहीं दूर अंधेरे में गुम कर देना चाहता है।
कविता की व्याख्या आपके
पास भेजी जा रही है। इसे कई बार पढ़िए और समझिए, फ़िर प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
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जिन्दगी में जो कुछ
है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी
मेरा है
वह तुम्हें प्यारा
है।
प्रेम के कारण व्यक्ति खुद को सम्पन्न और समृद्ध समझता है।
कवि को भी लगता है कि उसकी प्रेमिका उसे उसी रूप में प्रेम करती है, जैसा वह
है।
इसलिए वह कोई कमी महसूस नहीं करता है।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर
अनुभव सब
यह विचार-वैभव
सब
दृढ़ता यह, भीतर की
सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
उसे अपनी गरीबी पर भी गर्व होता है क्योंकि गरीबी की स्थिति में भी उसे प्रेम
प्राप्त होता है।
प्रेम में उसे कुछ ऐसे अनुभव होते हैं, जो हल्के-फुल्के नहीं, बल्कि गंभीर
हैं।
उसके भीतर बहुत सारे नए-नए विचार पैदा होते हैं, जो पहले कभी पैदा नहीं हुए थे।
वह भीतर से स्वयं को मज़बूत समझने लगा है।
उसके भीतर भावनाओं की सरिता (नदी) बहने लगी है।
इस प्रकार उसके सारे अनुभव बिलकुल नए हैं, मौलिक, अपने हैं,
जिसे दूसरे लोग नहीं समझ सकते हैं ।
वे कहीं और से लिए या मांगे गए नहीं हैं। ।
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत
है अपलक है-
संवेदन तुम्हारा है!
कवि जानता है कि हर पल उसके भीतर नया-सा कुछ
जाग रहा है, निरन्तर जाग रहा है, वह उसकी प्रेमिका के कारण है।
सारी संवेदनाएं उसकी प्रेमिका के कारण हैं।
जाने क्या रिश्ता
है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता
हूं, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना
है?
मीठे पानी का सोता
है
प्रेम के अनुभव से गुज़रते हुए कवि अपने रिश्ते को कोई नाम नहीं दे पाता है।
वह बार-बार अपनी भावनाएं प्रकट करता है, उड़ेलता है, पर भावनाएं बार-बार पैदा
हो जाती हैं।
ये मधुर भावनाएं कहां से आती हैं!?
कवि यह सोचकर चकित होता है और खुद से
पूछता है कि क्या उसके दिल में कोई झरना है या मीठे पानी का स्रोत है!
भीतर वह, ऊपर तुम
मुस्काता चांद ज्यों
धरती पर रात-भर
मुझपर त्यों
तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!
उसके भीतर (मन में) भावनाओं का स्रोत है और बाहर उसकी प्रेमिका है।
जिस प्रकार रातभर चन्द्रमा धरती पर अपनी चांदनी बिखेरता है, उसी प्रकार
प्रेमिका का खिला हुआ चेहरा कवि को उजाले से भर देता है।
सचमुच मुझे दंड दो
कि भूलूं मैं भूलूं मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी
अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर
में पा लूं मैं
झेलूं मैं, उसी में
नहा लूं मैं
व्यक्ति अपनी प्रेमिका को भूलना चाहता है। प्रेमिका और उसके प्रेम
को भूलना व्यक्ति के लिए सज़ा होगी, फ़िर भी वह भूलना चाहता है।
वह प्रेमिका और प्रेम के उजाले से दूर करके गहरे अंधेरे में स्वयं को गुम कर
देना चाहता है।
वह दक्षिण ध्रुव पर होने वाली लम्बी रात जैसी स्थिति में अपने शरीर को, अपने
चेहरे को,
अपने मन को गुम कर देना चाहता है। क्य़ों?
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित
आच्छादित
रहने का रमणीय
यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।
क्योंकि वह हमेशा स्वयं को प्रेमिका से घिरा और ढंका महसूस करने लगा है।
यह घिरा और ढंका रहना अच्छा लगता है, पर सहन नहीं कर पाता है।
प्रेम की इतनी ज्यादा अधिकता के कारण उसका व्यक्तित्व खोने लगा है।
ममता के बादल की मंडराती
कोमलता-
भीतर पिराती
है
जिस प्रकार बादल आसमान में मंडराते हैं, उसकी प्रकार प्रेमिका द्वारा दिखाया
जाने वाला अपनापन और उसकी कोमलता कवि को अपने आस-पास हमेशा
महसूस होती है। इससे कवि के मन में पीड़ा पैदा हो जाती है। पीड़ा क्यों पैदा
होती है? क्यों?
कमज़ोर और अक्षम
हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता
डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता
बरदाश्त नहीं होती है!
क्योंकि प्रेमिका और उससे मिलने वाले प्रेम पर कवि इतना अधिक
निर्भर हो गया है कि उसकी आत्मा कमज़ोर और क्षमताहीन हो गई है।
वह भविष्य के बारे में सोचकर डरने लगा है। वह सोचने लगा है कि भविष्य
में यदि उसे यह प्रेम न मिला तो वह कैसे खुद को संभाल सकेगा!
इस कारण प्रेमिका के द्वारा बहलाया जाना और अपनापन
दिखाया जाना कवि को सहन नहीं होता है। इससे उसकी चिन्ता दूर नहीं होती है।
सचमुच मुझे दंड दो
कि हो जाऊं
पाताली अंधेरे की
गुहाओं में विवरों में
धुएं के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
कवि धरती की गहराइयों के अंधेरे में,
गुफ़ाओं में, बिल में, धुएं में लापता हो जाना चाहता है, जहां वह
प्रेमिका के प्रभाव से खुद को मुक्त कर सके।
लापता कि वहां भी तो
तुम्हारा ही सहारा है!
पर वह जानता है कि लापता होने पर भी
वह वहां अपनी प्रेमिका को याद करके ही रह सकेगा।
इसलिए कि जो कुछ भी
मेरा है
या मेरा जो होता-सा
लगता है, होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही
कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है
यहां कवि कार्य-कारण सिद्धांत (CAUSE AND EFFECT THEORY)
की ओर संकेत करता है।
इस सिद्धांत के अनुसार हर कार्य या घटना का कोई न कोई कारण होता है।
कवि का सब कुछ उसकी प्रेमिका के
कारण है।
कवि का पूरा अस्तित्व उसकी प्रेमिका से घिरा हुआ है, उसके पास जो कुछ है,वह
उसकी प्रेमिका से जुड़ा हुआ है। आगे भी जो कुछ होना संभव होगा, वह भी उसकी
प्रेमिका से जुड़ा होगा।
अब तक तो जिन्दगी
में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी
मेरा है
वह तुम्हें प्यारा
है।
कवि कहता है कि अब तक उसकी ज़िन्दगी में जो कुछ था और जो कुछ है,
वह सब उसने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया है क्योंकि
वह सब उसकी प्रेमिका को भी अच्छा लगता है।
पर अब वह अपनी प्रेमिका के प्रभाव से मुक्त होना चाहता है।
सहर्ष स्वीकारा है
गजानन माधव मुक्तिबोध
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
क्रमांक 3,4,5 के उत्तर लिखने से पहले इन सूक्ष्म प्रश्नों के उत्तर भी लिखिए।
१. कवि की जिन्दगी में जो कुछ है, जो भी है, उसे सहर्ष स्वीकार
क्यों किया है?
२. प्रेम में कवि को कौन-कौन-से अभिनव अनुभव होते हैं?
३. ‘मुस्काता चांद ज्यों धरती पर रात-भर मुझपर त्यों
तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!’
का क्या अर्थ है?
४. कवि दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या को शरीर, चेहरे और मन में क्यों पा लेना
चाहता है?
५. ममता के बादल की मंडराती कोमलता कवि के भीतर पीड़ा क्यों
पैदा करती है?
6 ६. कवि क्या सोचकर डरता है?
७. कवि ने कार्य-कारण सिद्धांत से किस ओर संकेत किया है?
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