Tuesday, July 7, 2020

बात सीधी थी पर-- कुंवर नारायण




दिनांक 11.05.2020
बात सीधी थी पर
कुंवर नारायण

शब्दार्थ
टेढ़ी फ़ंस गई-उलझ गई, समझनी कठिन हो गई
पेचीदा-कठिन, उलझी हुई, न समझ में आनेवाली
बेतरह-जैसा कि नहीं होना या करना चाहिए
तमाशबीन-तमाशा देखनेवाले
बात की चूड़ी मर गई-बात बेअसर हो गई
सहूलियत-सुविधा से, आसानी से, सहजता से
बरतना-प्रयोग करना

ध्यान दीजिए
आपने दो तरह की कीलें देखी होंगीं-एक सामान्य कील होती है, जिसे हथौड़ी से ठोंका जाता है और दूसरी वाली पर चूड़ियां होती हैं। इसे कील नहीं, स्क्र्यू (स्क्रू) कहा जाता है। स्क्र्यू को पेंचकस/स्क्र्यूड्राईवर से कसा जाता है। अगर स्क्र्यू को हथौड़ी से ठोंका जाए तो उसकी चूड़ियां खराब (मिस) हो जाती हैं, फिर उसे कसना असंभव हो जाता है।

इस कविता में कवि ने बताया है कि किसी बात को स्पष्ट रूप से प्रकट करने के लिए उचित और भावों के अनुकूल भाषा का प्रयोग करना चाहिए, जैसे कि स्क्र्यू को स्क्र्यूड्राईवर/पेंचकस से कसना चाहिए, हथौड़ी से नहीं ठोंकना चाहिए । जो लोग सही भाषा का प्रयोग नहीं करते हैं, उनकी बात का असर भी नहीं होता है। 

कवि ने ऐसे कवियों-लेखकों की ओर संकेत किया है, जो कठिन आलंकारिक भाषा का प्रयोग करते हैं, पर अपनी बात स्पष्ट रूप से लोगों के सामने नहीं रख पाते हैं। लोग बात को समझे बिना तमाशा देखनेवालों की तरह ‘वाह वाह’ करते हैं।

एक उदाहरण- ऐसी ही कठिन कविता लिखने वाले एक दरबारी कवि थे-केशवदास, जो अपनी कविताओं में जबरदस्ती अलंकार ठूसते थे। उनकी कविताओं में भाषा का चमत्कार होता था, लोग उनकी कविता की खूब प्रशंसा करते थे, पर कविता में कही गई बात को समझना कठिन हो जाता था। इसलिए उन्हें ‘कठिन काव्य का प्रेत’ कहा गया है।

अब आप इस कविता को पढ़िए ,समझिए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।

बात सीधी थी पर
कुंवर नारायण

बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
ज़रा टेढ़ी फ़ंस गई
एक बार कवि सीधी सादी बात किसी को समझा नहीं पाया।
भाषा का उसने सरल-सहज प्रयोग नहीं किया था, इसलिए ऐसा हुआ था।



उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फ़िर भाषा से बाहर आए—
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।

कवि ने भाषा में उलझ चुकी बात को पाने की
कोशिश की अर्थात स्पष्ट करने की कोशिश की,
पर उचित भाषा का प्रयोग न कर सका।
इससे  बात कठिन होती चली गई।


सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाए
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्यों कि इस करतब पर मुझे
साफ़ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह ।
कवि नहीं समझ पा रहा था कि वह बात को स्पष्ट क्यों नहीं कर पा रहा था,
जबकि वह अलंकारों, उदाहरणों आदि का प्रयोग करके समझाने की कोशिश कर रहा था। सुननेवाले भी उसकी प्रशंसा कर रहे थे।
कवि प्रशंसा सुनकर भाषा को और कठिन तथा उलझानेवाली बना रहा था।
एक और मज़ेदार बात ये हुई कि कवि खुद उलझ गया
था कि वह क्या कहना चाहता था।



आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
ज़ोर जबरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।
कवि इस बात से डरा हुआ था कि
कहीं ऐसा न हो कि उसकी बात का असर समाप्त हो जाए।
पर ऐसा ही हुआ। कठिन भाषा के जाल में उलझ जाने के कारण
बात ठीक से नहीं कही जा सकी और उसका असर वास्तव में समाप्त हो गया।



हारकर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
यह जानते हुए कि बात उलझ गई है, कवि ने
जैसे-तैसे अपनी बात कह दी। यह परवाह नहीं की कि
वह लोग समझ भी पाएंगे या नहीं।
जैसे कोई स्क्र्यू को कील की तरह ठोंक दे।


ऊपर से ठीकठाक
पर अन्दर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत!
देखने-सुनने में बात ठीक ही लग रही थी, पर
कवि अपनी बात को प्रभावी ढंग से नहीं कह पाया था।
लोगों पर बात का असर नहीं हुआ।


बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा—
‘क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?’
बात शरारती बच्चे की तरह थी। जैसे शरारती बच्चा शरारत करके
भागता है और पकड़ में नहीं आता है, वैसे ही बात भी कवि की पकड़ में
नहीं आ रही थी। कवि को परेशान देखकर बात ने उससे पूछा-‘क्या तुमने भाषा
को सरल, सहज और सुविधाजनक ढंग से प्रयोग करना कभी नहीं सीखा है?’

अभ्यास के लिए प्रश्न-

1.    भाषा को सहूलियत से बरतने का क्या अर्थ है?
2.    भाषा और बात में क्या सम्बंध है?
3.    भाषा के चक्कर में सीधी बात भी कैसे टेढ़ी हो जाती है? बोलने और सुननेवालों की क्या दशा होती है?
4.     निम्नलिखित काव्यांश में कौन-कौन से अलंकार हैं?
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा—
‘क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?’

5.     कविता में कवि ने क्या प्रतिपादित किया है? क्या प्रस्तुत करने कोशिश की है?

6.     मिलान कीजिए-
बिम्ब/मुहावरा
अर्थ/विशेषता
बात की चूड़ी मर जाना
कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बनना
बात की पेंच खोलना
बात का पकड़ में नहीं आना
बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना
बात का प्रभावहीन हो जाना
पेंच को कील की तरह ठोंक देना
बात में कसावट का न होना
बात का बन जाना
बात को सहज और स्पष्ट करना

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