काले मेघा पानी दे
धर्मवीर भारती
सारांश
इस
संस्मरणात्मक निबंध में लेखक ने अपनी किशोरावस्था की घटना को याद किया है और
कहा है कि आज हम चाहते तो बहुत कुछ हैं, पर त्याग नहीं करना चाहते हैं। हमारे पास
बहुत कुछ है, पर भ्रष्टाचार के कारण उसका सदुपयोग नहीं हो पाता है। इसे ही लेखक
कहता है कि पानी झमाझम बरस रहा है, पर गगरी फूटी की फूटी और बैल प्यासा का प्यासा
रह जाता है। इस स्थिति को बदलना चाहिए।
लेखक आर्यसमाजी संस्कारों वाला है। वह किसी अंधविश्वास
और ढकोसले को नहीं मानता है। जीजी एक वृद्ध महिला हैं। वे लेखक की रिश्तेदार नहीं
हैं, पर लेखक से बहुत प्रेम करती हैं। लेखक भी उनके प्रति लगाव रखता है। पर जहां
लेखक अवैज्ञानिक विश्वासों का विरोध करता है, वहीं जीजी सभी तरह के धर्म-कर्म,
कर्म-कांड, पूजा-पाठ करती हैं। इस बात पर लेखक जीजी से नाराज़ भी होता है, पर विवश
होकर उसे सारे कर्म-कांडों में भाग लेना पड़ता है।
पहले कई क्षेत्रों में यह माना जाता था और अब भी माना
जाता है कि इन्द्रदेव से वर्षा के लिए प्रार्थना की जा सकती है। जब वर्षा न हो और
सूखा पड़ा हो बच्चे और किशोर गांव-मोहल्ले में टोली बनाकर घूमते थे, लोगों से पानी
मांगते थे। लोग बचाकर रखा कुछ पानी उनपर फ़ेंकते थे। इससे ज़मीन पर कीचड़ हो जाता था
और वे उसमें लोट-पोट होते थे। वे स्वयं को इन्दर-सेना कहते थे और मानते थे कि ऐसा
करने से इन्द्र देव प्रसन्न होकर बरसात करेंगे। वहीं गांव-मोहल्ले के लोग उन्हें
तिरस्कार के भाव से ‘मेंढक मंडली’ कहते थे। जीजी ने लेखक से इन्दर सेना को पानी
देने के लिए कहा तो लेखक ने इनकार कर दिया। तब जीजी ने लेखक को समझाया कि इन्दर
सेना को पानी देने का अर्थ है, पानी की बुवाई। जिस तरह किसान अच्छे बीजों को खेत
में बोता है और बदले में उसे कई गुना अनाज मिलता है, उसी तरह इन्दर सेना को पानी
देना भी पानी को बोना है। यह दान है। दान तभी फल देता है, जब हमारे पास कम हो और
हम त्याग करने के लिए तैयार हो जाएं। ऋषि-मुनियों ने भी दान को तभी फलप्रद बताया
है, जब हम त्याग कर सकें। जैसा राजा होता है, वैसी ही प्रजा होती है-यह बात सत्य
है, पर यह भी सत्य है कि जैसी प्रजा होती है, राजा भी वैसा ही होता है। गांधी जी
भी राजा और प्रजा के बारे में यही कहते
थे।
किशोरावस्था की इन बातों को लेखक पचास साल बाद भी कई
बार याद करता है और कहता है कि आज हम त्याग करना नहीं जानते हैं। हर किसी को खूब चाहिए,
पर त्याग का कहीं नाम नहीं है। दूसरे के भ्रष्टाचार पर हम चटखारे लेकर बातें करते
हैं, पर कहीं न कहीं हम सब भी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। इसी भ्रष्टाचार के कारण
किसी चीज़ की कमी न होते हुए भी कमी बनी रहती है। हमारी गगरी फूटी है, इसीलिए खूब
बरसात होने पर भी हमारे बैल प्यासे के प्यासे रह जाते हैं।
पाठ को पढ़ने के पश्चात कठिन शब्दों
और वाक्यों की सूची बनाइए। अगली कक्षा में आपकी कठिनाइयों का निवारण किया जाएगा।
अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
यदि कोई प्रश्न कठिन है, तो अगली कक्षा में उसपर विशेष रूप से चर्चा की जाएगी।1. इन्दर-सेना के बच्चे खुद को इन्दर सेना क्यों कहते थे? लोग
इन्दर-सेना को मेंढक मंडली क्यों कहते थे?
2. जीजी ने लेखक को इन्दर-सेना पर पानी फ़ेंके जाने को किस तरह
सही ठहराया? उन्होंने दान और त्याग का महत्त्व कैसे समझाया?
3. इन्दर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय कों बोलती है? भारतीय
के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में नदियों का क्या महत्त्व है?
4 4. गगरी फूटी बैल पियासा में बैलों के प्यासा रहने की बात
क्यों कही गई है?
5. पानी दे गुड़धानी दे कहकर पानी के साथ गुड़धानी की मांग
मेघों से क्यों की गई है?
6. लेखक ने यह निबंध क्या बतलाने के लिए लिखा है?
7. पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि जब रिश्तों में हमारी
भावना-शक्ति बंट जाती है तो विश्वासों के जंगल में सत्य की राह खोजती हमारी बुद्धि
की शक्ति कमज़ोर पड़ जाती है।
26 जून, 2020
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