Tuesday, July 7, 2020

बाज़ार दर्शन जैनेन्द्र कुमार




बाज़ार दर्शन
जैनेन्द्र कुमार

बाज़ार-दर्शन पाठ आपको दो बार पढ़ना है, एक बार यह सारांश पढ़ने से पहले तथा दूसरी बार यह सारांश पढ़ने के बाद। इसके बाद आपको सूक्ष्म प्रश्नों के उत्तर लिखकर देखना है कि आपने पाठ को कितना समझा है। तत्पश्चात पाठ के साथ के प्रश्न संख्या 1, 2, 3 तथा 4 के उत्तर लिखें। यदि कोई बात समझ में न आए तो लिखकर मुझे व्हाट्सऐप पर भेजें या अगली कक्षा में पूछें।
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बाज़ार-दर्शन का क्या अर्थ है?
बाज़ार-दर्शन के दो अर्थ हैं। पहला-बाज़ार को देखना, दूसरा-बाज़ार का दर्शनशास्त्र (फ़िलोसोफी) जानना। बाज़ार को ध्यान से देखनेवाला व्यक्ति बाज़ार के सभी पहलुओं को समझ जाता है, बाज़ार के पीछे की शक्तियों को और उसकी कार्यप्रणाली को समझ जाता है। तब वह बाज़ार का लाभ उठाकर उसको सार्थक कर पाएगा।
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सारांश
लेखक ने इस पाठ में दो मित्रों की चर्चा की है, जो कहीं दूर से आकर लेखक के घर में आकर रुके थे।
पहले मित्र अपनी पत्नी के साथ बाज़ार जाकर लौटे तो ढेरों सामान खरीद लाए थे। पूछने पर बताया कि पत्नी साथ थीं, इसलिए इतना सारा सामान खरीद लिया। इस तरह चतुराई करके मित्र ने अनावश्यक चीज़ों की खरीदारी की ज़िम्मेदारे पत्नी पर डाल दी। लेखक कहता है कि लोग पत्नी के नाम पर ऐसी खरीदारियां करते हैं।
दूसरे मित्र बाज़ार गए तो दिनभर बाज़ार में बिताकर खाली हाथ लौटे। उन्होंने कहा-बाज़ार में सारी चीज़ें इस तरह सजाई गई थीं कि मन करता था-ये भी ले लूं, वह भी ले लूं, सब कुछ ले लूं। पर ज्यादा पैसे नहीं थे, इसलिए कुछ भी नहीं लिया। पर यह अहसास ज़रूर हुआ कि मेरे पास कितना कम है और बाज़ार में कितना अधिक है। इससे अपनी हालत पर तकलीफ़ होती है।
बाज़ार से अनावश्यक खरीदारी के पीछे कई कारण होते हैं--
1.     बाज़ार का जादू, जो बिना कहे कहता है कि आओ, बाज़ार के जाल में फ़ंसकर लुट जाओ।
2.     जेब में रुपया-पैसा हो, यानी पैसे की गरमी।
3.     जब मन खाली हो-यानी जब पता न हो कि बाज़ार से क्या खरीदना है और बाज़ार चले गए तो सभी चीज़ें लेने का मन होगा। बाज़ार व्यक्ति को चारों तरफ़ से घेर लेगा।
बाज़ार में एक जादू है, जो तब काम करता है, जब जेब भरी हो और मन खाली हो। तब स्वाभिमान/अहंकार को पूरा करने के लिए और दिखावे के लिए व्यक्ति अनावश्यक फ़ैंसी चीज़ें खरीद लेता है।
लेकिन अगर मन भरा है, यानी पता है कि बाज़ार से क्या लेना है, और ज़ेब में पैसे भी हों, तो व्यक्ति केवल अपनी ज़रूरत का सामान लेगा।
लेखक चूरनवाले भगत जी की भी चर्चा करता है।
भगत जी काला नमक, जीरा आदि से चूरन बनाकर बेचते हैं। उनका चूरन प्रसिद्ध है । छह आने की कमाई हो जाने पर वे बचा हुआ चूरन बच्चों में मुफ़्त में बांट देते हैं। भगत जी के लिए चांदनी चौक के बाज़ार से तभी तक मतलब है, जब तक पंसारी की दूकान पर काला नमक, जीरा आदि मिले। चांदनी चौक का बाज़ार दूसरों को जितना दिखाई देता है, उतना ही भगत जी को भी दिखाई देता है, पर वे उसके जादू से प्रभावित नहीं होते हैं,  न बाज़ार अपने आस-पास बाज़ार बनाते हैं।
 बाज़ार तभी सार्थक होता है, जब-
1.      वह ज़रूरत के समय काम आए और वहां जाकर ग्राहक लूटे न जाएं।
2.     लोग अपनी अनावश्यक पर्चेज़िंग पावर न दिखाएं।
3.     जैसे तीखी धूप में जाने से पहले पानी पी लिया जाए तो लू नहीं लगती, वैसे ही बाज़ार जाने से पहले तय कर लें कि क्या खरीदना है, तो बाज़ार का जादू असर नहीं करेगा। लोग खाली मन से बाज़ार न जाएं।
बाज़ारूपन कैसे बढ़ता है-
क.   जो लोग अपनी अनावश्यक पर्चेज़िंग पावर दिखाकर बाज़ार को खुद पर हावी होने देते हैं, वे बाज़ार का बाज़ारूपन बढ़ाते हैं। वे बाज़ार को शक्ति दे देते हैं।
ख.   बाज़ारूपन बढ़ने पर कपट की प्रवृत्ति बढ़ती है। आवश्यकताओं का आदान-प्रदान नहीं होता है, बल्कि शोषण होने लगता है। दूसरे की हानि में अपना लाभ दिखाई देता है।
ग.     कपट की प्रवृत्ति बढ़ने से लोगों में सद्भावना कम होती है। निष्कपट व्यक्ति शिकार होता है।
घ.    सद्भाव कम होने से लोग आपस में भाई-भाई, अच्छे पड़ोसी और अच्छे ग्राहक-विक्रेता नहीं रह जाते हैं।
इस प्रकार, ऐसे बाज़ार का अर्थशास्त्र वास्तव में गलत है। लेखक ऐसे अर्थशास्त्र को मायावी शास्त्र और अनीतिशास्त्र कहता है।
उपर्युक्त बातों के सन्दर्भ में लेखक ने निम्नलिखित चर्चाएं भी की हैं-
1.     ऊंचा बाज़ार बिना बुलाए बुला लेता है। उसका निमंत्रण मूक होता है। इसलिए हम उसका तिरस्कार नहीं कर पाते हैं।
2.     चाह का अर्थ है-अभाव। जो चीज़ हमारे पास न हो, उसकी चाह पैदा होती है।
3.     फ़ैंसी चीज़ें आराम में खलल डालती हैं।
4.     मन को बन्द नहीं होना चाहिए। हमें मन किसी उद्देश्य/प्रयोजन से मिला है। पर मन को मनमाना करने की छूट नहीं होनी चाहिए।
5.      मन और आंखों को खोलकर बाज़ार को देखना भी चाहिए।
6.     अगर कोई मन और आंखों को ही बन्द कर ले तो यह मन और आंखों की जीत नहीं, एक तरह से बाज़ार की ही जीत है। आंखें फ़ोड़ लेने से बाज़ार खत्म नहीं हो जाता।
7.     बन्द मन कमज़ोर हो जाता है। वह विराट की जगह क्षुद्र हो जाता है।
8.     बन्द मन शून्य हो जाता है। पर ईश्वर को ही शून्य होने का अधिकार है, मनुष्य को नहीं।
9.     सिर्फ़ ईश्वर ही शून्य है क्योंकि वही पूर्ण है। हम  सब अपूर्ण हैं।
10. पैसे में व्यंग्य-शक्ति है, जो हमें अहसास कराती है कि हमारे पास कितना कम है। हम कई बार यह सोच लेते हैं कि हम गरीब मां-बाप के घर क्यों पैदा हुए, किसी अमीर के यहां क्यों न पैदा हुए। इस तरह हम अपनों के प्रति कृतघ्न बन जाते हैं।
11. चूरन वाले भगत जी के सामने पैसे में व्यंग्य-शक्ति और बाज़ार की चकाचौंध हार जाती है। इसके पीछे कोई आत्मिक, नैतिक, धार्मिक अथवा स्पीरिचुअल बल है। यह बल इस संसार से अपर है, कुछ ऊंचा और अलग है।
कुछ शब्दों के अर्थ आपकी पाठ्यपुस्तक में दिए गए हैं और कुछ शब्दों के अर्थ यहां दिए जा रहे हैं। यदि किसी अन्य शब्द का अर्थ समझ में न आए तो पूछिए।
शब्दार्थ
कायल होना-  मान लेना
संयम-   स्वयं पर नियंत्रण
कामना-  चाह, इच्छा
विकल-  व्याकुल, बेचैन
तृष्णा-  प्यास, चाह
त्रास-  पीड़ा
गति-   सही दशा
मर्यादा-  सीमा
बहुतायत-  अधिकता
खलल-  बाधा
कृतार्थ-  कृतज्ञ
सनातन-  शाश्वत, सदा रहने वाला
मोक्ष-जीवन-  मरण की पीड़ा से मुक्ति
अशक्त-  शक्तिहीन
संकीर्ण-  संकरा
विराट-  बहुत बड़ा
क्षुद्र-  छोटा
बलात-  बलपूर्वक
अप्रयोजनीय-  बिना प्रयोजन/उद्देश्य के
सरनाम-  प्रसिद्ध
गुर-  विद्या/तकनीक
देय-  जो दिया जाना है
विमुखता-   अनदेखा करना
सुहृद-  अच्छे हृदय वाला
अखिल- सम्पूर्ण के लिए प्रयुक्त होने वाला शब्द, जैसे अखिल भारतीय, अखिल विश्व
कुल- सम्पूर्ण

सूक्ष्म प्रश्न-
1.      भरे मन का क्या आशय है?
2.      खाली मन का क्या आशय है?
3.      लेखक के दोनों मित्रों में क्या अन्तर है?
4.      बाज़ार का जादू क्या है?
5.      बाज़ार का जादू कैसे लोगों पर अपना असर डालता है?
6.      बाज़ारूपन किसे कहते हैं?
7.      भगत जी और बाजार में क्या सम्बन्ध है?
8.      आपमें और भगत जी में क्या अन्तर है?
9.      भगत जी के व्यक्तित्व और आचरण किस प्रकार समाज में शान्ति स्थापित कर सकता है?
10.  बाज़ार सार्थक कब होता है?
11.  कैसे लोग बाज़ार को सार्थक बनाते हैं?
12.  बाज़ार में कपट बढ़ने से समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?
13.  लेखक ने आज के बाज़ार के अर्थशास्त्र को मायावी शास्त्र और अनीतिशास्त्र क्यों कहा है?
14.  पैसे की व्यंग्य-शक्ति व्यक्ति को कैसा बना देती है?
15.  आपके अनुसार यह क्यों कहा जाता है कि स्त्री माया जोड़ती है?

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