Tuesday, July 7, 2020

उल्लू और मृत्यु का अंदेशा


रात्रिचर प्राणियों को भी  प्रकाश की ज़रूरत पड़ती है.. उल्लू-चमगादड़ आदि  तो वह तीखे उजाले में देख सकते हैं, न  ही सूचीभेद्य अन्धकार में ....उल्लू बेचारा रा को घरों के आस-पास रहने वाले कीटों के चक्कर में  रहता है और अक्सर घर की छतों पर बैठता है क्योंकि उसे भी प्रकाश से प्रेम होता है। 
प्राचीन काल में प्रकाश के पर्याप्त साधन नहीं थे ...रात के आठ बजते-बजते अन्धकार छा जाता था ...पर जब किसी के घर में जब कोई बीमार होता था तो घर के लोग प्रकाश की व्यवस्था कर के उसकी सेवा-सुश्रुषा में लगे रहते थे..उल्लू प्रकाश के श्रोत से आकृष्ट होकर छत पर जा बैठता...अब जो बैठेगा, वह अपनी भाषा में कुछ ना कुछ टो बोलेगा ही.. ...कहीं रोगी मर गया तो उसकी मृत्यु का कारण छत पर बैठे उल्लू को मान लिया जाता था...आज भी ऐसा ही है..उल्लू और मृत्यु में सहसंबंध स्थापित करने के कारण उल्लू को  मृत्यु का अंदेशा लाने वाला मान लिया गया...अरे भाई, जो दीपक रात भर घर में जल रहा था, उसी ने बता दिया कि मौत आस-पास मंडरा रही है !

मियां नसीरुद्दीन -कृष्णा सोबती (XI )

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