Sunday, September 6, 2015

मुझे याद है, कैसे भूलूं !

(ब्रजेश, प्रजेश, प्रकाश, प्रदीप, नरसिंह, उग्रसेन, आनंदिनी,
आराधना, मोनिका, बेनीमाधव को समर्पित)

मुझे याद है, कैसे भूलूं !

इस उजाड़ तट पर सागर के
पत्तन एक, नगर था एक ।
दूर देश से आया करते
जल-जहाज मस्तूलोंवाले
बड़ी-बड़ी चिमनी थीं जिनकी
नौकाएं कुछ पालों वाली
आती, जातीं, माल उठातीं,
माल गिरातीं, रुकतीं, सोतीं
रैन-दिवस के वे कोलाहल...
मुझे याद है, कैसे भूलूं !

मुझे याद है, कैसे भूलूं !
डूब रहे दिल को नाविक के
धीरज देता, आशा से भर
भटक रहे सब जलपोतों को
राह दिखाता वह प्रकाश का
ऊंचा खंभा जिसके तल पर
अंधकार था महाघनेरा,
सागर के इस तट पर ही था
आसमान से बातें करता...
मुझे याद है, कैसे भूलूं !

मुझे याद है, कैसे भूलूं !
इक दिन इस तट से गुज़रे थे
झोंके महाबवंडरवाले,
काले बादल के गिरोह वे
अंधकार बरसानेवाले,
टकरायीं यूं तट से लहरें
चट्टानें  भी धुआं हो गयीं,
बिखर गए सब महायान भी
ज्यों कागज़ की नौका थे वे...
मुझे याद है, कैसे भूलूं !

मुझे याद है, कैसे भूलूं !
महासुनामी जैसा था वह,
किसी नूह का नहीं पता था,
ग्रह-नक्षत्र थे फ़ना हो गए
और समेटे अशुभ क्षणों को
एक भयावह सपने जैसा
महा-धूमकेतु  गुज़रा था,
अंतहीन-सा उसका जाना
या क्षण खिंचकर वर्ष हुआ था
मुझे याद है, कैसे भूलूं !

मुझे याद है, कैसे भूलूं !
घाट खो गया, पोत खो गए,
तट पर छाए वृक्ष खो गए,
बाग-बगीचे-बाट खो गए,
हवा हो गयीं चट्टानें सब,
वह प्रकाश का स्तंभ खो गया,
वक्त खो गया हंसने का वह,
वे सब सज्जन स्वजन खो गए
महाहर्ष का कारण थे जो...
मुझे याद है, कैसे भूलूं !

राजेश प्रसाद
20.07.2015

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