छोटी-छोटी कविता
चान्द है सुन्दर मगर कब पास है
गीत है लेकिन गले का दास है
है सुरा मधुमय मगर उपवास है
अस्तित्व तेरा भी यू ही अहसास है..
प्रेम क्या है, ज़िन्दगी का एक सम्मोहक सपन है
है सफल तो वासना है, असफल है तो रुदन है…
जी चाहता है दोस्त हम तुमसे न कुछ कहे
मगर वह सज़ा क्या जिसके लिए तैयार तुम रहो !
जानते है तुम समन्दर बन के न हमसे मिलोगे
तपते रेगिस्तान मे लेकिन सफ़र सुहाना है…
धूप रेगिस्तान-सी पा फूल उपवन मे जले
मूर्ख है वे जो सुकोमल भावनाओ मे पले
हो हृदय पाषाण के, तन भी लोहे के बने
ताकि तपकर ताप मे भी विविध सान्चो मे ढले…
1 comment:
अपनें मनोभावो को कविता मे अच्छा व्यक्त किया है।
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